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________________ अपभ्रंश साहित्य में पार्श्वनाथ १५९ रइधु तिलोयपण्णति उत्तरपुराण पुष्पदन्त १. गणधर २. पूर्वमाता ३. मुनि (मोक्षगामी) १६००० ० ४०० १८०० ३५० १६००० ३५० १६००० ४. शिक्षक १०९५० १०९०० १०९५० ५. अवधिज्ञानी १४०० १५०० १४०० १४०० ६. केवलज्ञानी . १००० १५०० १००० १००० ७. विक्रियाधारी. १००० १५०० १००० १००० ८. मन:पर्ययज्ञानी ७५० . ९०० ७५० ७५० ..(विपुलमती) ९. वादी ६०० ६०० ६०० १०. श्रुतज्ञानी ८०० ११. आर्यिका • ३६००० ३८००० ३६०० ३६००० १२.श्रावक एक लाख एक लाख एक लाख एक लाख १३. श्राविकाएं तीन लाख तीन लाख तीन लाख तीन लाख सत्ताइस हजार १४. स्त्रीमुक्ति - १९०० स्थान वाले . १५. देव-देवियाँ संख्यातीत असंख्यात .... असंख्यात १६. तिर्यञ्च संख्यात अप्रमाण ... संख्यात धर्मोपदेश और विहार - पुष्पदन्त के अनुसार ७० वर्षों तक किन्तु आ. गुणभद्रानुसार ५ माह कम ७० वर्षों विहार करते हुए भगवान् पार्श्वनाथ ने धर्मोपदेश देकर जीवों का कल्याण किया था।९० निर्वाण ... पुष्पदन्त, पद्मकीर्ति और रइधु ने प्राचीन परम्परा का अनुकरण करते हुए माना है कि, भगवान् पार्श्वनाथ चतुर्विध संघ को ज्ञान प्रदान
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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