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________________ अपभ्रंश साहित्य में पार्श्वनाथ १४९ स्वयंभू की राजकुमारी प्रभावती (जो पूर्व भव के मरुभूति की वसुन्धरी नामक पत्नी थी) द्वारा आर्यिका दीक्षा लेकर संघ की प्रधान आर्यिका होने आदि का उल्लेख हुआ है। शेष संधियों में भगवान् पार्श्वनाथ के विहार, उपदेश आदि का वर्णन विस्तार से किया गया है। ५. विबुध श्रीधर कृत पासणाहचरिउ विक्रम की १२वी शताब्दी में उत्पन्न विबुध श्रीधर (प्रथम) ने अपभ्रंश भाषा में वि.सं. ११८९ में अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को दिल्ली में 'पासणाहचरिउं' की रचना की थी, ऐसा उन्होंने अपने 'वड्ढमाणचरिउ' और 'पासणाहचरिउ' में उल्लेख किया है। यह ग्रन्थ २५०० गाथा प्रमाण है, जो १२ संधियों और २३८ कड़वकों में समाप्त हुआ है ।१८ बुध गोल्ह और वील्हा देवी के पुत्र तथा पासणाहचरिउ' के अलावा 'वड्ढमाण चरिउ' और चंदप्पह चरिउ' के सृजक कवि विबुध श्रीधर ने इस ग्रन्थ की रचना परम्परा से प्राप्त पार्श्वनाथ के कथानक के आधार पर की है। इसमें भ. पार्श्व के वर्तमान भव का वर्णन प्रारम्भ में और विगत भवों का वर्णन अंतिम संधियों में किया गया है। विबुध श्रीधर का यह ग्रन्थ आजतक अप्रकाशित है। इस ग्रन्थ की दों हस्तलिखित पाण्डुलिपियां२० निम्नांकित ग्रन्थ भंडारों में सुरक्षित है : १. . आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर २. अग्रवाल दि. जैन बड़ा मन्दिर, मोती कटरा, आगरा ६. देवचन्द्र कृतं पासणाहचरिउ - डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार कवि देवचन्द्र वि. सं. १२वी शताब्दी के कवि, मूल संघ गच्छ के विद्वान और वासवचन्द्र के शिष्य थे।२१ गुदिज्ज नगर के पार्श्वनाथ मंदिर में रचित महाकाव्य में भगवान् पार्श्वनाथ के वर्तमान और पूर्व भवों को ११ सन्धियों और २०२ कड़वकों में विभाजित किया है ।२२
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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