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________________ xviii तीर्थंकर पार्श्वनाथ आलेख के अंत में अमृतवाणी उपशीर्षक से लिखा है " स्वार्थ के वशीभूत होकर किसी का अच्छा या बुरा नहीं सोचना चाहिए, क्योंकि मानव तो मात्र निमित्त है और मनुष्य को अपने कर्मों का फल स्वयं ही भोगना पड़ता है । " 44 बाईस अगस्त को अमर उजाला ने 'कर्म सिद्धान्त को समझने वाले दूसरों को दोषी नहीं ठहराते' शीर्षक से दो कालम खबर प्रकाशित की। इस खबर में स्वतंत्रता दिवस के बारे में उपाध्याय श्री के विचारों को उद्धृत किया गया - ' ' भारत देश की स्वतंत्रता में जिन देशभक्तों का सहयोग रहा, वह अनुकरणीय है। अत्यधिक परेशानियां सहकर भी लोग अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे। इसी प्रकार की देशभक्ति की भावना यदि प्रत्येक व्यक्ति में रहे तो निश्चित ही हम भारत वसुंधरा के गौरव को बढ़ा सकते हैं।” उपाध्यायश्री ने जन्माष्टमी पर्व पर प्रेरक उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि "संसार में केवल स्वार्थ का भाव है। जन्माष्टमी का पर्व श्री कृष्ण जैसा महापुरुष बनने का दिन है" ( जगत टाइम्स, 26 अगस्त)। 27 अगस्त को इस अखबार ने अपना संपादकीय उपाध्यायश्री को समर्पित किया-'"मथुरा और पूरे ब्रज क्षेत्र के लिए यह गौरव की बात है कि उपाध्याय श्री सिद्ध क्षेत्र चौरासी में चातुर्मास कर रहे हैं। उनके वर्षा योग को यहां करीब डेढ़ माह हो चुका है। .. महाराज़ श्री सच्चे अर्थों में ज्ञान के सागर हैं। कोई विषय उनके गहरे ज्ञान से अछूता नहीं है। संसार के व्यवहार में कभी रहे नहीं, लेकिन घर, गृहस्थ, व्यापार समाज में आज क्या हो रहा है, इसकी पूरी और ताजी, जानकारी आपके पास मौजूद है, हर बुरी आदतों से लोगों को सावधान करते हैं ... . महाराज श्री की कठोर. चर्या और उनकी कठोरतम साधना को साक्षात् देखकर कोई भी जान सकता है कि प्राचीनकाल में हमारे ऋषि-मुनियों की तपस्या कैसी थी । " अपने संपादकीय के अंत में लिखा- "उपाध्याय श्री व्याकरण, न्याय और दर्शन शास्त्र के भी अधिकारी संत हैं (उनके स्वाध्याय की सीमा नहीं। सितम्बर माह काफी व्यवस्थाओं से भरा रहा। इस महीने में
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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