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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
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का पुरुषार्थ ही कलं का भाग्य कहलाता है। इसलिए जब तक सफलता न मिले पुरुषार्थ करते रहना चाहिए।"
जैन गजट ने 31 जुलाई के अंक में लिखा 'सराक उद्धारक उपाध्यायश्री ज्ञानसागर जी महाराज ने मुनि श्री वैराग्य सागर जी सहित विशाल जनसमुदाय की उपस्थिति में चातुर्मास स्थापित किया। विजय कुमार जैन, अध्यक्ष सिद्ध क्षेत्र चौरासी मथुरा ने मंगल कलश स्थापित किया और दिल्ली के महेन्द्र कुमार जैन ने शास्त्र भेंट किए। इससे पूर्व 'अमर उजाला' तथा 'आज' ने क्रमशः 17 व 20 जुलाई के अंकों में प्रवचन के समाचार विस्तार से छापे। यह सिलसिला जुलाई में पूरे महीने चलता रहा। इस बीच एक दो .अखबारों में उपाध्यायश्री की पत्रकार वार्ताओं को भी स्थान मिला।
अगस्त महीने में भी अखबारों में उपाध्यायश्री के सानिध्य में होने वाले कार्यक्रमों तथा प्रवचनों को काफी स्थान मिला। 'युवा वांग्मय ने
आठ अगस्त को खबर छापी। इसके बाद बारह अगस्त में 'आज' ने लिखा "उपाध्यायश्री ने कहा कि अहंकार मीठा जहर है जो मनुष्य का सर्वनाश कर देता है, अहंकार के जहर से बचने के लिए उत्तम मार्दव धर्म अमृत समान है।' तेरह अगस्त को एक स्थानीय दैनिक ने 'जीवन में ममता की जगह समता आनी चाहिए' शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया। "उपाध्यायश्री ने कहा कि मनुष्य की आत्म चेतना अमृत है
लेकिन राग-द्वेष की चाशनी इसे विकृत बना देती है।" - पाक्षिक 'मारुति नंदन' ने पन्द्रह अगस्त के अंक से उपाध्यायश्री
के बारे में चित्र सहित आलेख प्रकाशित किया। अखबार ने लिखा 'भारतीय धरती की जितनी वंदना करें उतनी ही कम है, इसके कण-कण में शक्ति समाई हुई है। इसी कारण प्रत्येक ऋतु का आनंद यहां विद्यमान है। यहां के लोगों को बड़े पुण्य योग से उपाध्यायश्री की अमृतवाणी सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। सभी ने इस संत के चरण कमलों में अद्भुत विलक्षणता का अनुभव किया।" इस आलेख में उपाध्यायश्री के प्रवचनांशों को प्रमुखता से शामिल किया गया है।