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तीर्थंकर पार्श्वनाथ लेखकों में से आचार्य पुष्पदन्त, देवदत्त, सागरदत्त, आ. पद्मकीर्ति, विवुध श्रीधर देवचन्द्र, रइधु, असवाल, तेजपाल और सागरदत्तसूरि के नाम उल्लेखनीय हैं। पार्श्वनाथ के संबंध में इनकी कृतियों में महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख किया गया है जिससे उनकी ऐतिहासिकता सिद्ध होती है। इसलिए उक्त ग्रंथकारों के ग्रन्थों का संक्षिप्त आलोडन करना आवश्यक है।
१. आचार्य पुष्पदन्त कृत महापुराण
वि. सं. १०वी शताब्दी के आचार्य पुष्पदन्त ने १०२ संधियों में अपभ्रंश भाषा में महापुराण की रचना की। इस की ९३ और ९४वी संधि में भगवान् पार्श्वनाथ के विगत और वर्तमान भवों का वर्णन किया गया है। यह वर्णन गुणसेन आचार्य के उत्तर पुराण के आधार पर किया हुआ प्रतीत होता है। अत: इसकी कथावस्तु परम्परागत है।
इसकी ९३वी संधि में बतलाया गया है कि पोदनपुर के राजा अरविन्द के मंत्री विश्वभूति की पत्नी के गर्भ से कमठ और मरुभूति नामक दो पुत्र हुए थे। अपने छोटे भाई विश्वभूति की पत्नी वसुन्धरा के साथ गुप्त संबंध स्थापित करने के कारण मरुभूति द्वारा शिकायत किये जाने पर राजा ने उसे सिर मुडवा कर और गधे पर चढ़ा कर नगर में घुमवा कर अपने राज्य से निर्वासित करने का दंड दिया था। कमठ ने वन में जाकर शैवधर्म के अनुयायियों से दीक्षा ले ली। मरुभूति को अपने बड़े भाई के निर्वासन का दु:ख हुआ। राजा के मना करने पर भी अपने बड़े भाई से क्षमा मांगने और घर वापिस लाने के लिए मरुभूति कमठ के पास गया। कमठ ने क्रोधित होकर उसके सिर पर चट्टान से आघात कर उसे मार डाला। मरुभूति मर कर वज्रघोष हाथी हुआ। इस पहले भव से घटी घटना के कारण कमठ मरुभूति के प्रति वैर-बंध कर दस भवों तक कमठ के जीव ने कुक्कुट सर्प, अजगर, कुरंग भील, सिंह, महिपाल और ज्योतिष देव के रूप में, मरुभूति के जीव हाथी, रश्मिवेग मुनि, वज्रनाभि मुनि, आनन्द मुनि और पार्श्वनाथ पर क्रूरता पूर्वक घात और उपसर्ग किये। परिणामस्वरूप कमठ के जीव को तीन बार नरक जाना पड़ा। मरुभूति ने क्रमश: आत्मोत्थान