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________________ अपभ्रंश साहित्य में पार्श्वनाथ - प्रो. डॉ. लालचन्द जैन* भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्ध हैं। भारतीय दार्शनिकों, विशेषकर डॉ. राधाकृष्णन, एस,एन. दास गुप्ता, एम. हिरिमन्ना, डॉ. एन. के. देवराज, चक्रधर शर्मा, पारसनाथ द्विवेदी, ने सार्वभौमिक और त्रिकालिक सत्तावान महापुरुष मानकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की है। इनमें से कतिपय मनीषियों के विचार प्रस्तुत हैं। __डॉ. राधाकृष्णन की मान्यता है कि पार्श्वनाथ ईसा से ७७६ वर्ष पूर्व निर्वाण को प्राप्त हुए थे। एस.एन. दास गुप्ता ने भारतीय दर्शन के इतिहास में लिखा है कि भगवान महावीर के पूर्ववर्ती पार्श्व, जो अंतिम से पहले तीर्थंकर थे, महावीर से कोई ढाई सौ वर्ष पूर्व मृत्यु को प्राप्त हुए कहे जाते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र से सूचित होता है कि पार्श्व सम्भवत: एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे।' एस. हिरियन्ना ने पार्श्वनाथ के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि इनमें से पार्श्वनाथ को, जो वर्धमान से पहले हुए थे और जिन्हें आठवीं शताब्दी ई. पू. का माना जाता हैं, एक ऐतिहासिक पुरुष माना जा सकता है। इस बात के प्रमाण हैं कि उनके अनुयायी वर्धमान के समकालीन थे।' चक्रधर शर्मा के विचार हैं कि तिइसवें तीर्थकर पारसनाथ नि:संदेह ऐतिहासिक व्यक्ति थे जो आठवीं या नौवी शती ई. पू. हुए थे।' पारसनाथ द्विवेदी ने भारतीय दर्शन में लिखा है कि तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ ऐतिहासिक महापुरुष थे। इनका जन्म महावीर से लगभग २५० वर्ष पूर्व ईसवी सन् के आठ सौ वर्ष पूर्व वाराणसी के राजा अश्वपति के यहां हुआ था। ३० वर्ष की अवस्था में राजसी वैभव का परित्याग कर सन्यास ले लिया और घोर तपस्या की। ७० वर्ष तक जैन धर्म का प्रचार किया। चार महाव्रत अहिंसा, सत्य, अनस्तेय और अपरिग्रह पर विशेष जोर दिया।' * प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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