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मराठी साहित्य में तीर्थंकर पार्श्वनाथ
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न हो। इसी वजह से सारे साहित्य में पद्मावती के अनुषंगिक पार्श्वनाथ की स्तुति है।
१८वीं सदी का जिनसागरजी का “कैको" नामक भारूड जैन कवियों के मराठीपन पर विशेष प्रकाश डालता है। “कैको" का मतलब है भविष्य बताने वाली व केशवस्वामी जी के भारूड से परिचित “कैकाई"। इस भारूड में कर्नाटक के "हुमच्य” गांव की पद्मावती नामक देवी भविष्यवाणी करती दिखती है। (१२वीं सदी)
पार्श्वनाथ देव आम्हां, हुमंस माणा गांव। दुरील माझा देस, 'माझ पद्मावती नाव । सगुण सांगावया आली दादा, ऐक माझा भाव।
जुगुलांची सृष्टी' दादा, नव्हत ठाव गांव। ... देवी धार्मिक लोक गायिका का रूप ले यह संकेत महाराष्ट्र के जोग-जोगणीयों के रमितों में मिलता है। जिनसागरजी की “कैको" भी
धर्मप्रसार के लिए बहुत आगे निकल गयी है। __ जैन कासार समाज की अस्मिता है “कालिका पुराण" । लातूर के भट्टारक महिचंद्र जी के शिष्य देवेंद्र कीर्तिजी ने तत्कालीन धार्मिक सामाजिक व राजकीय परिवर्तन का वर्णन करने वाला अनेक दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रंथ १८वी सदी के प्रारंभ में ही लिखा। कालिका का मतलब है पद्मावती, जो आज भी कासार जैन समाज की रक्षक देवता के रूप में महाराष्ट्र में वंदनीय है। इस ग्रंथ में ४८ अध्याय हैं। ओवी संख्या ८ हजार से ऊपर है। शिरहाडपुर जैन के मल्लीनाथ जैन मंदिर में इसकी हस्तलिखित प्रति है। मुसलमानों के आक्रमण से कर्नाटक व महाराष्ट्र राज्यों में कैसी उथल-पुथल मची और जैन धर्म पर इसका कैसे विपरीत असर हुआ यह इस ग्रंथ से जाना जा सकता है। जैन-लिंगायत झगड़े व उनका न्यायदान मुस्लिम सुल्तान करते थे यह भी जानकारी मिलती है ।१९