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________________ १३८ तीर्थंकर पार्श्वनाथ कहते हैं। पौष मास के धार्मिक महोत्सवों में यह कीर्तन उन्होंने डफ के ताल पर किया होगा।१५ (स) 'पार्वाभ्युदय' यह जिनसेनजी का पार्श्वनाथ तीर्थंकर पर रचा काव्य है। १९६८ में ज. ने. क्षीरसागर जी ने (मुंबई) इसका मराठी अनुवाद किया। यह मूल ग्रंथ प्राकृत में है जिसकी रचना जिनसेन स्वामी जी ने ८वी सदी में की थी। 'श्री भ. पार्श्वनाथ दीक्षा कल्याण के बाद योग धारण करते हैं, यहां से लेकर उनके पूर्वभव में कमठ का जीव संबर नामक ज्योतिष्क देव होता है और अवधि ज्ञान से उन्हें दुश्मन समझकर बहुत तकलीफें देता है। इस मध्यवर्ती कल्पना पर आधारित यह काव्य है। इसमें कवि कुलगुरु कालिदास जी के मशहूर 'मेघदूत' की भी समस्यापूर्ति की है। यहाँ मेघदूत का अन्तिम चरण व स्वयं के तीन इस क्रम से पवनदूत, हंसत, नेमिदूत काव्य रचनाएँ की। लेकिन जिनसेन, जी ने मेघदूत के सभी श्लोक समस्यापूर्ति स्वरूप आत्मसात किए और पार्श्वनाथ चरित्र पर आधारित 'पार्वाभ्युदय' नामक सुरस काव्य की रचना की। आखिर में जिनसेन जी . का व्यक्तित्व व काल निर्णय इन विषयों की छान-बीन की है।१६ । इसके अतिरिक्त जीवराज ग्रंथमाला सोलापुर से सन १९८३ में भ. पार्श्वनाथ की छोटी पर महत्वपूर्ण जानकारीयुक्त पुस्तक प्रकाशित की गयी। इसके लेखक पं. नरेन्द्र कुमार जयवंतसा भिसीकर है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रथमानुयोग शास्त्र के महत्वपूर्ण ग्रंथ व संत पुरुषों के आदर्श समाज के सामने रखना था। इस ग्रंथ के अतिरिक्त जैन साहित्य का इतिहास खंड-३, जैन ज्ञानकोश खंड-३, जिनसेन आचार्य का उत्तर पुराण, सुमती शहा सोलापुर से २४ तीर्थंकर स्तुति व पूर्णाध्य अनंत बोपलकरजी का पार्श्वनाथ पुराण, सन्मती, जैनबोधक, प्रगती व जयविजय आदि अनेक जैन मराठी मासिक व साप्ताहिक पत्रिकाओं में प्रासंगिक लेख छपे जिनसे तीर्थकर पार्श्वनाथ जी की जानकारी मिलती है। भ. पार्श्वनाथ जी की रक्षक देवी पद्मावती महाराष्ट्र के जनमानस में गहरी बैठी है। एक भी जैन मन्दिर ऐसा नहीं है जहां पद्मावती की मूर्ति
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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