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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान् के चातुर्याम धर्म का प्रभाव अत्यन्त दूरगामी हुआ । उसके बाद जितने धर्म संस्थापक हुए उन्होंने अपने धर्म सिद्धान्तों की रचना में पार्श्वनाथ के चातुर्यामों से सहायता ली। इसमें आजीवक मत के संस्थापक गोशालक और बौद्ध धर्म के संस्थापक बुद्ध मुख्य हैं । भगवान् बुद्ध के जीवन पर तो चातुर्याम की गहरी छाप थी। प्रारंभ में वे पार्श्वनाथ सम्प्रदाय के पिहितास्त्रव मुनि के शिष्य बुद्ध - कीर्ति नाम से बने थे। आगे चलकर उन्होंने जिस अष्टाङ्गिक मार्ग का प्रवर्तन किया उसमें चातुर्याम का समावेश किया गया है । १०२ भगवान् पार्श्वनाथ की वाणी में करुणा, मधुरता और शान्ति की त्रिवेणी एक साथ प्रवाहित होती थी । परिणामतः जन-जन के मन पर उनकी वाणी का मंगलमयी प्रभाव पड़ा, जिससे हजारों ही नहीं लाखों लोग उनके अनन्य भक्त बन गये । पार्श्वनाथ के समय तापस परम्परा का प्राबल्य था । लोग तप के नाम पर जो अज्ञान कष्ट चला रहे थे प्रभु के उपदेशों से उसका प्रभाव कम पड़ गया। अधिक संख्या में लोगों ने आपके विवेकयुक्त तप से नव प्रेरणा प्राप्त की। आपके ज्ञान वैराग्यपूर्ण उपदेश से तप का सही रूप निखर आया । पिप्पलाद जो उस समय का प्रतिष्ठित वैदिक ऋषि था उसके उपदेशों पर भी आपके उपदेशों की प्रतिच्छाया स्पष्ट रूप से झलकती है। उनका कहना था कि प्राण या चेतना जब शरीर से पृथक हो जाती है तब वह शरीर नष्ट हो जाता है। वह निश्चित रूप से भगवान् पार्श्वनाथ के “पुद्गलमय” शरीर से जीव के पृथक होने पर विघटन " इस सिद्धान्त की अनुकृति है । 'पिप्पलाद' की नवीन दृष्टि से निकले हुए ईश्वरवाद से प्रमाणित होता है किं उनकी विचार धारा पर पार्श्व का स्पष्ट प्रभाव है । प्रख्यात ब्राह्मण ऋषि ‘भारद्वाज' जिनका अस्तित्व बौद्ध धर्म से पूर्व है, पार्श्वनाथ काल में एक स्वतंत्र मुण्डक सम्प्रदाय के नेता थे।' बौद्धों के अंगुत्तरनिकाय में उनके मत की गणना मुण्डक श्रावक से की गयी है । ७ राजवार्तिक ग्रन्थ में उन्हें क्रियावादी आस्तिक के रूप में बताया गया है । '
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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