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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ शाक्य मुनि गौतम द्वारा बौद्ध धर्म प्रवर्तन के बहुत पूर्व मध्य एशिया में उससे मिलता जुलता धर्म प्रचलित था। सर हेनरी रालिन्सन के अनुसार - मध्य ऐशिया में वल्ख नगर का नव्य विहार तथा ईंटों पर बने अन्य स्मारकीय अवशेष वहाँ काश्यप का जाना सूचित करते हैं। काश्यप, एक प्रसिद्ध प्राचीन जैन मुनि का नाम तथा कई प्राचीन तीर्थंकरों का गोत्र तो था ही साथ ही, वह स्वयं पार्श्वनाथ का भी. गोत्र था। आदिपुराण के अनुसार - जिस उरग वंश में पार्श्वनाथ का जन्म हुआ . था, उसका संस्थापक काश्यप अपर नाम का मघवा था। अत: इससे यह ज्ञात होता है कि तीर्थंकर पार्श्व काश्यप गोत्र के थे और सम्भवत: अपने गोत्र नाम काश्यप से भी प्रसिद्ध थे। मध्य एशिया का कियाविशि नगर जो कैस्पिया भी कहलाता था और सम्भवतया इसी आधार पर ७वीं शती में चीनी यात्री हेनसांग ने तथा उसके भी लगभग सहस्त्र वर्ष पूर्व सिकन्दर के यूनानी साथियों ने इस नगर में बहसंख्यक निर्ग्रन्थ साधु देखे थे। अतएव इसकी पूरी सम्भावना है कि महावीर के पूर्व भी मध्य-एशिया के कैस्पिया, अमन, समरकन्द, बल्ख आदि नगरों में जैन धर्म प्रचलित था। यूनानी इतिहास के जनक हरोदोतस ने छठी-पांचवीं शती में अपने ग्रंथ में एक ऐसे धर्म का उल्लेख किया है, जिसमें सर्व प्रकार मांसाहार वर्जित था। उसके अनुयायी मात्र अन्न भोजी थे। ई.पू. ५८० में हुये यूनानी दार्शनिक पैथेगोरस, जो स्वयं महावीर और बुद्ध का समकालीन था, जीवात्मा के पुर्नजन्म एवं आवागमन में तथा कर्म सिद्धान्त में विश्वास करता था। सर्व प्रकार की जीव हिंसा एवं मांसाहार से विरत रहने का उपदेश देता था। यहां तक कि कतिपय वनस्पतियों को भी धार्मिक दृष्टि से अभक्ष्य मानता था एवं पूर्व जन्म का ज्ञाता था। ये आत्मा को हेय एवं नाशवान मानते थे, उपरोक्त विचारों का बौद्ध धर्म एवं ब्राह्मण धर्म से कोई सदृश्य नहीं है। ये मान्यताएं सुदूर युनान एवं ऐशिया माइनर में उस काल में प्रचलित थी, जब भगवान् महावीर एवं गौतम बुद्ध अपने-अपने धर्म का
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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