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________________ काशी की श्रमण परम्परा और तीर्थकर पार्श्वनाथ ७७ ६. धवला टीका: १ पृष्ठ - ४५, ४६. ७. ब्रह्मा देवानां प्रथम संबभूव विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता - मुण्डकोपनिषद् - १, १. ८. वाराणसीये पुडवी सुपइठेहिं सुपास देवाय। .. जेट्ठस्स सुक्कवार सिदिणम्भि जादो विसाहाए।। तिलोयपण्णत्ति - ४/५३२. ९. चन्दपहो चन्दपुरे जादो महसेण लाच्छेमहि आहिं। पुस्सस्स किण्ण एयारसिए अणुगह णक्खन्ते ।। तिलोयपण्णत्ति - ४/५३३. १०. सीहपुरे सेएसो विष्डु णरिदेण वेणुदेवीए। .__ कारसिंए फागुण सिद पक्खे समणभेजादो।। तिलोयपण्णत्ति - ४/५३६. ११. हयसेण वम्मिलाहिं जादो हि वाराणसीय पासजिणों पुसस्स बहुल एक्कारसिंए रिक्खे तिसाहाए।।तिलोयपण्णत्ति - ५/५४८. - १२. मुनयो वातरशाना पिशांगा वसते मला: - ऋग्वेद - १०/१३५/२. १३. व्रात्य आसीदीयमान एव य प्रजापति समैरयत्-अथर्ववेद-प्रथम सूक्ति. १४. पं. बलभद्र जैन - भारत के जैन तीर्थ, पृष्ठ १२४. १५. पं० कैलाश चन्द्र शास्त्री, जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका-पृष्ठ-१०८. : १६. वही - पृष्ठ १०७. . . .. १७.. वही - पृष्ठ १०४. . . '. १८: वही : पृष्ठ १०४. १९. बलभद्र जैन, भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, प्रथम भाग, पृष्ठ १२६.
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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