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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ . जैन शासकों में स्तूप के संदर्भ में विस्तृत विवरण प्राप्त होते हैं। सारनाथ स्थित जो स्तूप है वह प्रियदर्शी सम्राट सम्प्रति का हो सकता है, क्योंकि यह स्थान श्रेयांसनाथ की कल्याणक भूमि रही है। दूसरे “देवनाम प्रियः" यह जैन परम्परा का शब्द है। जैन सूत्रसाहित्य में कई स्थानों पर इसका प्रयोग किया गया है, जिसका प्रयोग भव्य, श्रावक आदि के अर्थ में आता है। पुरातत्वज्ञ उक्त कारणों से ही सम्भवत: इस संदेह को इस प्रकार व्यक्त करते हैं, “सम्भवत: यह स्तूप सम्राट अशोक द्वारा निर्मित हुआ" । चन्द्रपुरी (चन्द्रावती) काशी से २० कि.मी. दूर आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ के जन्मस्थान. से संबंधित है। जिसके सन्दर्भ में परम्परागत स्रोत उपलब्ध होते हैं। उक्त तथ्यों के आलोक में काशी की जैन श्रमण परम्परा का विशिष्ट स्थान है। जैन स्मृति अवशेष उसकी प्राचीनता और व्यापकता को स्पष्ट करते हैं। भारत में कहीं भी उत्खनन से प्राप्त होने वाली सामग्रियों में से श्रमण परम्परा के २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं सबसे अधिक प्राप्त होती हैं। तात्पर्य यह है कि काशी की परम्परा का सम्पूर्ण देश पर कालजयी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। Mm संदर्भ १. भारतेन्दु समग्र - पृष्ठ ६४९, ६५०. २. रामायण - बालकाण्ड - ४५, २२ - २६, ६६ । ११-१२, ६,१, १६,२७. महाभारत द्रोण: ७४, ५६, ६१,, १६९,२९. ४. बुद्ध चरित १०, ३, १, ९३. इत्थं प्रभाव ऋषभोऽवतार: शंकरस्य मे। सतां गतिर्दीनबन्धुर्नवमः कथितवस्तव। ऋषभस्य चरित्रं हि परमं पावनं महत् । स्वर्य यशस्यमायुध्यं श्रोतव्यं च प्रचत्नत: ।। शिवपुराण ४,४७-४८.
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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