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कहाँ हुआ कमठ का उपसर्ग तेरापंथ-बीसपंथ का विवाद है। और अब तो आचार्य परम्परा को लेकर तथा समाज प्रतिनिधित्व को लेकर भी राजस्थान के पार्श्व तीर्थों पर विवाद चल रहे हैं।
ऐसे में भला बिजौलिया अतिशय क्षेत्र भी कैसे बचता। यहां जैनत्व और दिगम्बरत्व के इतने साक्ष्य होने पर भी अन्य सम्प्रदायों ने अपना प्रभुत्व जताया था। कई वर्षों तक न्यायालयों में मुकदमा चला और क्षेत्र का विकास अवरुद्ध रहा। अभी कुछ वर्ष पूर्व निर्णय दिगम्बर जैन समाज के पक्ष में हुआ है। तभी से बिजौलिया की उत्साही समाज क्षेत्र के विकास में लगी है। परकोटा बन गया है, सुविधायुक्त धर्मशालायें बन गई हैं। एक विशाल भव्य चौबीसी मंदिर, सुन्दर समवशरण मंदिर एवं बड़े प्रवचन हाल का निर्माण लगभग पूर्णता पर है। निकट भविष्य में ही इसकी प्रतिष्ठा हो जाने पर क्षेत्र का विकसित रूप तो सामने आ जायेगा परन्तु क्षेत्र के पुराने वास्तविक वैभव को उजागर करने के लिए तो आवश्यक है कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर बिजौलिया क्षेत्र को भगवान पार्श्वनाथ का दीक्षा एवं ज्ञान कल्याणक एवं उपसर्ग क्षेत्र घोषित किया जाए।