________________
कहाँ हुआ कमठ का उपसर्ग पर “सोपान तना" लिखा है जिससे यह अनुमान किया जाता है कि यहां से गर्भग्रह के नीचे तलघर के लिए सीढ़ियां (सोपान) रही होंगी।
मंदिर के नजदीक एक कोठे में दो स्तम्भ हैं, दोनों पर शिलालेख उत्कीर्ण हैं। उत्तर की ओर का शिलालेख भट्टारक शुभचन्द्र के शिष्य हेमकीर्तिजी के द्वारा फाल्गुन सुदी २ बुधवार सं. १४५६ को उत्कीर्ण कराया गया है। इस स्तम्भ के पार्श्व में एक नक्शा भी उत्कीर्ण है जो उस समय की क्षेत्र की स्थिति का दिग्दर्शक है। दक्षिण की ओर के स्तम्भ का शिलालेख फाल्गुन शुक्ला ३ गुरूवार सं. १४५६ को उत्कीर्ण किया गया है। दोनों स्तम्भ एक आर्यिका की समाधि पर बनाए गए हैं और उनपर तीर्थंकर भगवंतों, मुनियों एवं आर्यिकाओं की मूर्तियां भी अंकित हैं। . . यहां के रेवती कुण्ड के नजदीक कोट में भी एक बड़ा शिलालेख चार मीटर लम्बा है जिसमें ४२ पंक्तियां हैं, यह शिलालेख संवत १२२६ में लोलार्क श्रेष्ठि के द्वारा उत्कीर्ण कराया गया है। इसमें भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा तथा श्रेष्ठि के दानादिक का वर्णन है। इस पर उस समय के यहां के राजा आदि के नाम भी अंकित हैं जो इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। “शिखर पुराण" वाले विशाल शिलालेख के नजदीक एक चट्टान पर एक छोटा शिलालेख और है जो अत्यंत जीर्ण है, सबसे पुराना लगता है और पढ़ा भी नहीं जा सका है। • • उक्त प्राचीन शिलालेख के अतिरिक्त सभी शिलालेख स्पष्ट हैं। पढ़े
भी जा चुके हैं और प्रकाशित हैं, कुछ का हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित है। बड़े शिलालेख . सरकारी पुरातत्व विभाग के नियंत्रण में होते हुए भी असुरक्षित हैं। मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि हमारा प्रवेश तो शिलालेख के नजदीक प्रतिबंधित है, उस पर फैंसिंग लगी है, परन्तु बकरियां उस पर निर्द्वन्द विचरती रहती हैं, विश्राम करती हैं और मल-मूत्र क्षेपण भी करती
___ समय-समय पर आचार्य भगवंतों, मुनिराजों एवं विद्वानों ने इन शिलालेखों को देखा-पढ़ा है। पूज्य आचार्य कनकनन्दी जी महाराज ने वे