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________________ पार्श्वनाथ के जीवन से सम्बन्धित कतिपय तथ्य और सम्प्रदाय भेद - डॉ. जयकुमार जैन* भारतवर्ष के धार्मिक जीवन में जिन महनीय विभूतियों का चिरस्थायी प्रभाव है, उनमें जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ अन्यतम हैं। यही कारण है कि भारत की सभी आर्य एवं आर्येतर भाषाओं में पार्श्वनाथ के जीवनचरित पर बहुत लिखा गया है। पार्श्वनाथं का जीवनचरित भगवान महावीर के समान ही अत्यन्त रोचक एवं घटनाप्रधान है। पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता अब असंदिग्ध स्वीकार कर ली गई है, अत: उसकी चर्चा अब सामयिक प्रतीत नहीं हो रही है। दिगम्बर परम्परा में पार्श्वनाथ भगवान् के चरित के कुछ सूत्र सर्वप्रथम आचार्य यतिवृषभ द्वारा विरचित प्राकृत भाषा में निबद्ध तिलोयपण्णत्ति में दृष्टिगोचर होते हैं। यद्यपि यह करणानुयोग का ग्रन्थ है। अत: इसका मुख्य विषय लोकालोक विभाग, युगपरिवर्तन, चतुर्गति आदि का वर्णन करना है। किन्तु दिगम्बर जैन वाङ्मय के श्रुतांग से सम्बन्ध रखने के कारण इसमें ६३ शलाक़ा पुरुषों का भी संक्षिप्त विवरण दिया गया है। . तिलोयपण्णत्ति में पार्श्वनाथ के पिता का नाम हयसेन तथा माता का नाम वर्मिला आया है। हयसेन प्रचलित नाम अश्वसेन का ही पर्यायवाची है। क्योंकि हंय का अर्थ अश्व है और प्राचीन संस्कृत एवं प्राकृत साहित्य में इस तरह के उल्लेखों की परम्परा रही है। दिगम्बर परम्परा के गुणभद्रकृत उत्तरपुराण तथा पुष्पदन्तकृत महापुराण में पिता का नाम विश्वसेन आया है, जो विचारणीय है, क्योंकि अन्यत्र सर्वत्र अश्वसेन नाम का ही उल्लेख मिला है। इसी प्रकार तीर्थंकर पार्श्वनाथ की माता का नाम * रीडर, संस्कृत विभाग, एस.डी. कालेज, मुजफ्फरनगर
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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