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पावपित्य कथानकों के आधार पर भ. पार्श्वनाथ के उपदेश (१) पण्णा सम्मिक्खए धम्म। (२) विण्णाणेण धम्मसाहणमिच्छियं ।।
संदर्भ
१. आचार्य भद्रबाहु : कल्पसूत्र, शिवाना, १९७० २. पंडित सुखलाल. चार तीर्थंकर, पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी, १९८९. ३. आचार्य यतिवृषभ : तिलोयपण्णत्ति - १, जीवराज ग्रंथमाला, सोलापुर, १९५३. ४. स्वामी, सुधर्मा : आचारांग-२, आप्र.सं.व्यावर, १९८०. ५. जैन, सागरमल, सं०. ऋषिभाषित, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, १९८८. ६. उत्तराध्ययन-२, जैन विश्वभारती, लाडनूं, १९९३. ७. स्वामी, सुधर्मा : सूत्रकृतांग-२, तथैव, १९८६, पृष्ठ ३५७. ८. तथैव - : (१) भगवती सूत्र-१, तथैव, १९९.४ पृष्ठ १७९-२६३.
(२) भगवती सूत्र २-५, साधुमार्गी संघ, सैलाना,
-१९६८-७२, ९२१, १६१४, २७५४. ९. तथैव : ज्ञाताधर्मकथा सूत्र, अ.प्र.स. व्यावर, १९८१, पृष्ठ ५१३,५२६. १०. स्थविर : राजप्रश्नीय, तथैव, १९८२ पृष्ठ १६७. ११. देखो संदर्भ ६, पृष्ठं ३५. १२. स्थविर : निरयावलियाओ, गुर्जर ग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद, १९३४. १३. चटर्जी ए.के. : कंप्रेहेन्सिव हिस्ट्री आव जैन्स, के.एल.एम., कलकत्ता, १९७८,
पृष्ठ ११. . १४. वाचक, उमास्वाति : तत्वार्थाधिगम सभाष्य, राजचन्द्र आश्रम, अगास, १९३२,
पृष्ठ ४२. १५. देखो, संदर्भ १३, पृष्ठ २५१. १६. जैन, एन.एल. : सर्वोदयी, जैन तंत्र, पोतदार ट्रस्ट, टीकमगढ़, १९९७.