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योजनानां नवशती, सैकोन सप्तति स्तथा । चत्वारिंशद्योजनस्य, पञ्चोनशतजा लवाः ॥१८६॥
यदि इस भूमि की गहराई और जल की ऊंचाई कही है उसे पर्वत की ऊंचाई में से निकाल देना और जो संख्या आती है उतनी जल के ऊपर इन पर्वतों की ऊंचाई है, जम्बूद्वीप की दिशा तरफ समझना चाहिए । वह कितनी आती है ? तो नौ सौ. उनहत्तर योजन और चालीस-पंचानवे अंश पानी के ऊपर पर्वत की ऊँचाई आती है । (१८४-१८६)
४४२- १०/८५ भूमि की गहराई+३०६- ४५/६५ जल की ऊंचाई = ७५१४५/६५ है । १७२१ योजन पर्वत की ऊंचाई में से ७५१ ४५/६५ निकाल देने से = ६६६ ४०/६५ पानी के ऊपर की पर्वत की ऊंचाई आती है ।
अत्र चासर्गसंपूर्ति क्वाप्य विशेषतः । वक्ष्यतेऽशा अमी सर्वे पञ्चोनशतभजिता ॥१८७॥
यहां से यह सर्ग पूर्ण होता है वहां तक जहां कोई विशेष रूप न लिखा हो और अंश की बात की हो वहां पंचानवे भाग-एक योजन का अंश समझना 'चाहिए । (१८६) . शिखराडादशैतावदुत्तीर्य यदि चिन्त्यते ।
अत्रं प्रदेशे विष्कम्भो, ज्ञेयोऽमीषामयं तदा ॥१८॥ षष्टयाढर्यानि योजनानां, शतानि सप्त चोपरि ।
असीतिर्यो जनस्यांशाः पञ्चो नशतसंभवा ॥१८६॥ - शिखर के समभाग ऊपर से ६६६- ४०/६५ योजन नीचे उतने के बाद वहां कितनी चौड़ाई आती है ? उसका विचार करे तो वहां ७६०- ८०/६५ योजन का विष्कंभ (चौड़ाई) इन पर्वतों की समझना । (१८८-१८६)
तिर्यक् क्षेत्रेणेयता च, जल वृद्धिखाप्यते । किन्चिदूनाष्टपञ्चाशदंशाढया पञ्च योजनी ॥१६०॥ इतने तिरछे क्षेत्र में जम्बू द्वीप की दिशा तरफ पानी की वृद्धि पांच योजन और कुछ कम अट्ठावन अंश का प्रमाण होता है ।