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________________ (३३) • अपनीतेऽस्मिंश्च पूर्वराशिरीदृग्विधः स्थितः । पञ्च लक्षाः सहस्राणि षट् सप्ततिस्तथोपरि ॥१६७॥ नव पच्च दशाढयानि शतान्येषामथाष्टभिः । भागे हृते लभ्यते यत्तदद्रीणां मिथोऽन्तरम् ॥१६८॥ यदि इन वेलन्धर पर्वतों के मूल विभाग का अन्तर जानना हो तो पर्वत के चौड़ाई का आधा पांच सौ ग्यारह (५११) योजन और समुद्र में अवगाहित बने एक तरफ के बयालीस हजार योजन को साथ में (४२०००) गिनना अतः बयालीस हजार योजन और पांच सौ ग्यारह को दो गुणा करने से पचासी हजार बाईस योजन होता उसमें मध्य में रहे जम्बूद्वीप का एक लाख योजन मिलाने से एक लाख पचासी हजार बाईस (१८५०२२) योजन. होता है और उसकी परिधि पांच लाख पचासी हजार इकानवे (५८५०६१) होता है उसमें से आठ पर्वतों के विस्तार रूप आठ हजार एक सौ छिहत्तर (८१७६) योजन निकालते, पूर्व की संख्या इस तरह पांच लाख छिहत्तर हजार नौ सौ पंद्रह (५७६६१५) आए, ऐसे आठ भाग करने से वेलन्धर पर्वत का परस्पर अन्तर आता है । (१६२ से १६८) . ४२००० योजन जम्बूद्वीप की वेदिका समुद्र की ओर पूर्व दिशा .. ४२००० योजन जम्बूद्वीप की वेदिका समुद्र की ओर पश्चिम दिशा में . : ५११ योजन जम्बूद्वीप की वेदिका समुद्र की ओर पूर्व दिशा में पर्वत का . . . ५११ योजन जम्बूद्वीप की वेदिका समुद्र की ओर पश्चिम दिशा "" ८५०२२ = कुल जोड़ ....१००००० जम्बूद्वीप का १८५०२२ = परिधि = ५८५०६१ योजन १०२२ एक पर्वत का व्यास इस तरह आठ पर्वत का व्यास ८१७६, योजन निकाले ५८५०६ - ८१७६ = ५७६६१५ होता है । इसके आठ भाग करते ५७६६१५:८ = ७२१-१४ ३/८ योजन वेलन्धर पर्वत का अन्तर आता है । .(१६२-१६८)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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