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चौथे ग्रेवेयक के देवों की उत्कृष्ट स्थिति २६ सागरोपम और जघन्य स्थिति २५ सागरोप- है । उत्कृष्ट स्थिति वाले देवों का देहमान २ ६ हाथ का है और जघन्य स्थिति वाले देवों का देहमान २६ हाथ होता है । (५८२-५८३)
ग्रैवेयके पञ्चमेऽथ, वार्द्धयः सप्तविंशतिः । स्थितियेष्ठा कनिष्ठा तु, षड्विंशतिपयोधयः ॥५८४॥ चतुर्लवाधिको हस्तौ, द्वावत्राङ्ग परायुषाम् ।
तौ जघन्यायुषां पञ्चभागयुक्तौ प्रकीर्तितौ ॥५८५॥
पांचवें ग्रैवेयक के देवों का उत्कृष्ट आयुष्य २६ सागरोपम का है और जघन्य २६ सागरोपम का है, उत्कृष्ट आयुष्य वाले देवों का शरीर मान २४ हाथ है तथा जघन्य आयुष्य वाले देवों का देहमान २ हाथ का होता है । (५८५)
अष्टा विंशतिरुत्कृष्टा, षष्टे ग्रैवेयकेऽब्धयः । स्थितिरत्र जघन्या तु सप्तविंशतिब्धयः ॥५८६॥ ज्येष्ठस्थितीनामत्राङ्ग द्वौ करौ त्रिलवाधिकौ ।
तौ कनिष्ठ स्थितीनां तुं भागैश्चतुर्भिरन्वितौ ॥५८७॥ . छठे ग्रैवेयक के देवों का उत्कृष्ट आयुष्य २८ सागरोपम का है और जघन्य आयुष्य २७ सागरोपम है, उत्कृष्ट आयुष्य वाले देवों का शरीरमान २ २३ हाथ है तथा जघन्य आयुष्य वाले देवों का आयुष्यमान २० हाथ का होता है । (५८६-५८७)
गवेयके सप्तमे स्युरे कोनत्रिंशदर्णवाः ।। स्थितिर्गरिष्ठा लध्वी तु साष्टाविंशतिरब्धयः ॥५८८॥ द्वौ द्विभागाधिकौ हस्तौ, वपुर्येष्ठायुषामिह ।
लध्वायुषां तु तावेव, विभागााभ्यधिको तनुः ॥५८६॥
सातवें ग्रैवेयक के देवों का उत्कृष्ट आयुष्य २६ सागरोपम है और जघन्य आयुष्य २८ सागरोपम है, उत्कृष्ट आयुष्य वाले देवों का शरीर मान २ ते हाथ है तथा जघन्य आयुष्य वाले देवों का शरीरमान २० हाथ प्रमाण होता है।' (५८८-५८६)