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(५४३ )
पुष्पावकीर्णकाभावादाद्यग्रैवेयक त्रिके ।
सर्व संख्यापि पाक्य संख्या या नाति रिच्यते ॥ ५४६ ॥
ग्रैवेयक के आद्यत्रिक में पुष्पा वकीर्णक विमान नहीं होने के कारण पंक्तिगत संख्या में अन्य संख्या नहीं बढ़ती है । (५४६)
स्त्रयोविंशतिर्वृत्ताः सेन्द्रका मध्यमत्रिके ।
त्र्यस्त्रा अष्टाविंशतिश्च चतुरस्त्रा जिनैर्मिताः ॥५५०॥ द्वात्रिंशत्पुष्पावर्कीणां : सप्तोत्तरं शतं समे । तृतीय च त्रिके वृत्ता, एकादश सहेन्द्रकाः ॥५५१ ॥ त्र्यस्त्राश्च चतुरस्राश्च षोडश द्वादश क्रमात् । पुष्पावकीर्णका एक षष्टिः शतं च मीलिताः ॥ ५५२ ॥
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ग्रैवेयक के मध्यम त्रिक में इन्द्रक विमान सहित गोल विमान तेइस हैं, त्रिकोन विमान अट्ठाईस हैं, चोरस विमान चौबीस हैं और पुष्पावकीर्णक विमान बत्तीस हैं, कुल मिलाकर विमान एक सौ सात होते हैं। ग्रैवेयक के तृतीय त्रिकर्मा इन्द्रक विमान सहित गोल विमान ग्यारह हैं, त्रिकोन विमान सोलह हैं, चोरस विमान बारह हैं और पुष्पा वकीर्णक विमान इक्संठ है, कुल एक सौ विमान है । (५५१-५५२)
गैवेयकेषु नवसु विमानाः सर्व संख्यया । अष्टादशाढया त्रिशती, वृत्ताश्चैकोनसप्ततिः ॥ ५५३ ॥
त्रयश्चाश्चतुरशीतिश्च चतुरस्रा द्विसप्ततिः । सर्वाग्रेण त्रिनवतिश्चैषु पुष्पावकीर्णकाः ॥ ५५४॥
. चौरासी
नौ ग्रैवेयक में कुल विमानं अठारह है उसमें उनहत्तर गोल विमान, त्रिकोन विमान, बहत्तर चोरस विमान और ब्यानवे पुष्पा वकीर्णक विमान होते हैं ।
(५५३-५५४)
द्वाविशतियों जनानां शतानि पीठपुष्टता 1 प्रासादश्च शता शतान्यत्रोच्चाः कम्र केतवः
।।५५५ ॥
यहां के विमान की पृथ्वी की मोटाई बाईस सौ योजन है और प्रासाद एक हजार ऊँचा है और ऊपर सुन्दर ध्वजायें होती हैं । (५५५)