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(५४१)
विमानं सर्वतोभद्रं, विशालं सुमनोऽभिधम् । ततः सौमनसं प्रीतिकरमादित्य संज्ञकम् ॥५३६॥
नौ प्रतर में क्रमशः एक-एक इन्द्रक विमान होता है । उनके नाम - १-सुदर्शन, २-सुप्रबुध, ३-मनोरथ उसके बाद दूसरे त्रिक में १-सर्वतोभद्र, २-विशाल, ३-सुमन है और फिर तीसरे त्रिक में १-सौमनस, २-प्रीतिकर, ३-आदित्य नाम है । कुल नौ हैं । (५३५-५३६)
एभ्यश्च पतयो दिक्षु, विमानानां विनिर्गताः । पडौ पड़ौ दस, नव विमानान्यष्ट सप्त षड् ॥५३७॥ पञ्च चत्वारि च त्रीर्णि, द्वे चैतेषु यथाक्रमम ।
आद्यग्रैवेयके तत्र; प्रतिपङ्क्ति विमानकाः ॥५३८॥
उस इन्द्रक विमान की चारों दिशा में विमानों की पंक्ति निकलती है, प्रत्येक पंक्ति में क्रमशः, दस, नौ, आठ, सात, छः, पाँच, चार, तीन और दो विमान । होते हैं । (५३७-५३८) , ... . त्रयस्राश्चत्वारो द्विधाऽन्ये, त्रयस्रयः समेत्वमी ।
चत्वारिशत्पतिगता, द्वितीयप्रतरे पुनः ॥५३६॥ त्रयस्रयस्त्रिंधाऽप्येते, षट्त्रिंशल्पकितगा समे ।
तृतीयप्रतरे वृत्तौ, द्वौ द्विधाऽन्यै त्रयस्त्रयः ॥५४०॥ - द्वात्रिंशत्यपङ्क्तिगाः सर्वे, चतुर्थप्रतरे पुनः ।।
त्र्यस्त्रास्त्रयः परौ द्वौ द्वौ सर्वेऽष्टा विंशत्तिर्मताः ॥५४१॥
प्रथम ग्रैवेयक की प्रत्येक पंक्ति में त्रिकोन विमान चार हैं और गोल चोरस विमान तीन-तीन हैं । कुल पंक्तिगत विमान चालीस होते हैं । दूसरे ग्रैवेयक के प्रतर में तीन प्रकार के विमान तीन-तीन हैं और कुल पंक्तिगत विमान छत्तीस होते हैं । तीसरे ग्रैवेयक के प्रतर में गोल विमान दो हैं और चोरस-त्रिकोन विमान तीनतीन हैं और कुल मिलाकर विमान बत्तीस होते हैं । चौथे ग्रैवेयक के प्रतर में त्रिकोन विमान तीन हैं और गोल-चोरस विमान दो-दो हैं । कुल पंक्तिगत विमान अट्ठाईस होते हैं । (५३६-५४१)..