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(५२७) एक देवसहस्त्रेण, सेवितो बाह्य पर्षदि । स त्रिपल्योपमैकोनविशत्यर्णवजीविना ॥४४६॥ सामनिकानां विंशत्या, सहस्त्रैः परितो वृतः । एकै कस्यां दिशि वृतस्तावद्भिरङ्गरक्षकैः ॥४५०॥ त्रायस्त्रिशैलोंकपालैः, सैन्यैः सैन्याधिकारिभिः । आनतप्राणतस्वर्गवासिभिश्चापरैरपि ॥४५१॥ अनेकैर्देवनिकरैः, समाराधित शासनः । द्वयोस्ताविषयोरीष्टे, स विंशत्यब्धि जीवितः ॥४५२॥षड्भि कुलकं॥
उन्नीस सागरोपम + पांच पल्योपम के आयुष्य वाले अढाई सौ (२५०) अभ्यन्तर पर्षदा के देव, उन्नीस सागरोपम + चार पल्योपम के आयुष्य वाले पांच सौ मध्यम पर्षदा के देव, और उन्नीस सागरोपम + तीन पल्योपम के आयुष्य वाले एक हजार बाह्य पर्षदा के देवों से यह इन्द्र महाराज की सेवा होती है । बीस हजार सामानिक देवों तथा चार दिशा में बीस-बीस हजार अंग रक्षक देवों से यह इन्द्र महाराज घिरा हुआ रहता है । त्रायस्त्रिंश, लोकपाल, सैन्य सेनापति और आनतप्राणत देवलोक में रहने वाले अन्य भी बहुत देवों का समूह, इस इन्द्र महाराज के अनुशासन की आराधना करते हैं बीस सागरोपम के आयुष्य वाला यह इन्द्र महाराज दोनों देवलोक का शासन चलाते हैं । (४४७-४५२)
अस्य यानविमानं च, वरनाम्ना प्रकीर्तितम् ।
वराभिधानो देवश्च, नियुक्तस्तद्विकुर्वणे ॥४५३॥ . इस इन्द्र महाराज को बाहर जाने के लिए यान विमान (वर) नाम का होता है और उसकी रचना करने वाले देव का नाम भी 'वर' होता है । (४५३) ..
द्वात्रिंशदेष यंपूर्णान्, जम्बू द्वीपान् विकुर्वितैः । . रूपैर्भर्तुं क्षमस्तिर्यगसंख्यान् द्वीपवारिधीन् ॥४५४॥
यह इन्द्र महाराज अपने बनाये रूप से बत्तीस (३२) जम्बू द्वीप को तिर्छा से असंख्य द्वीप समुद्रों को भरने में समर्थ है । (४५४)