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________________ (५१४) उसमें पहले प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में त्रिकोन विमान आठ दूसरे सात-सात विमान है और कुल मिलाकर अट्ठासी विमान होते हैं । (३७४) : .. द्वितीय प्रतरे सप्त सप्तैते त्रिविधा अपि । सर्वे चतुरशीतिश्च, तृतीयप्रतरे पुनः ॥३७५॥ दूसरे प्रतर के अन्दर तीन प्रकार के विमान सात-सात हैं और कुल मिलाकर चौरासी (८४) विमान होते हैं । (३७५) . .. वृत्ताः षट् सप्त सप्तान्येऽशीतिश्च सर्वसंख्यया । .. तुर्ये त्र्यस्त्राः सप्त षट् षट्, परे षट् सप्ततिः समे ॥३७६॥... तीसरे प्रतर में गोल विमान छ: हैं और दूसरे में सात-सात हैं । कुल अस्सी विमान है, चौथे प्रतर में त्रिकोन विमान सात और दूसरे विमान छ:-छः हैं। कुल. मिलाकर ७६ विमान होते हैं । (३७६). . चतुर्णामिन्द्रकाणां च योगेऽत्र पङ्क्ति वृत्तकाः । . अष्टोत्तरशतं पङ्क्तित्र्यस्त्राश्च षोडशं शतम् ॥३७७॥ अष्टोत्तरशतं पङ्क्ति चतुरस्त्रास्ततोऽत्र च । द्वात्रिशदधिकं पतिविमानानां शतत्रयम् ॥३७८॥ चार इन्द्रक विमान मिलाकर पंक्तिगत गोल विमान एक सौ आठ हैं, त्रिकोण विमान एक सौ सोलह हैं, चोरस विमान एक सौ आठ हैं और कुल मिलाकर पंक्तिंगत विमान तीन सौ बत्तीस होते हैं । (३७७-३७८) . षट्शताभ्यधिकाः पञ्च सहस्राः साष्टषष्टयः । पुष्पावकीर्णका अत्र, सर्वे ते षट् सहस्रका ॥३७६॥ पांच हजार छ: सौ अड़सठ (५६६८) विमान पुष्पा वर्कीणक होते हैं और इस देवलोक के कुल विमान छः हजार होते हैं । (३७६) आधारवर्णोश्चत्वादि, स्यादेषां शुक्रनाकवत् । उत्पद्यन्त एषु देवतया प्राग्वन्महाशयाः ॥३८०॥ इस विमान के अन्दर आधार वर्ण ऊँचाई आदि शुक्र देवलोक के विमानों
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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