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देवों को समझना । खड्ग अर्थात् गेंडा, जंगली पशु समझना चाहिए । शाश्वत:शब्द कोष में खड्ग अर्थात् गंडक, तलवार सिंघोड़ा और बुद्ध के भेद रूप में कहा है । विडिम शब्द से मृग विशेष रूप में समझना चाहिए तथा देशी शास्त्र में विडिम का अर्थ बालमृग और गंड अर्थ में कहा है ।'
औप पातिके त्वेवं चिह्न विभागो दृश्यते - सोहम्य १ ईसाण, २ सणं कुमार, ३ माहिद ४ बंभ 5 लतंग ६ महासुक्क, ७ सहस्सार ८ आणय पाणय ६ आरण अच्चुय १० वई पालय १ पुष्फय २ सोमण स, ३ सिरिवच्छ ४ नंदियावत्त,५ कामगम,६ पी इगम, ७ मणोरम, ८ विमल,६ सव्व ओभद्द १० नामधिज्जेहिं विमाणहिं ओइन्ना वंदगा जिणंद मिग १ महिस, २ वराह, ३ छगल, ४ दद्दुर ५ हय, ६ गयवई, ७ भुयग ८ खग्ग ६ उसभं १० कविडिम पाय डिय चिंघम उडा" इति अत्र मृगादयोऽङ्क- लाच्छनानि विटपेषु-विस्तारेषु येषां मुकुटानां तानि तथा, तानि प्रकटित चिह्ननि रत्नादि दीप्त्या प्रकाशित मृगादि लाच्छनानि, मुकुटानि येषा ते तथा इति तत्वं तु सर्व विदो विदन्ति॥ ____ औप पातिक सूत्र में चिन्ह के विभाग इस प्रकार से है - १- सौधर्म, २- देव लोक, ३- ईशान, ४- सनत्कुमार, ५- माहेन्द्र, ५- ब्रह्म, ६ लांतक ७- महाशुक्र, ८- सहस्रार, ६- आनत-प्राणत, ११,१२ आरण-अच्युतके इन्द्र महाराज श्री जिनेश्वर भगवन्त को वंदन करने आते हैं उस समय १- पालक, २- पुष्पक, ३- सौमनक, ४- श्रीवत्स, ५- नंधावर्त,६- कामगम,७- प्रीतिगम,८- मनोरम, ६-१० विमल
और ११-१२ सर्वतोभद्र नामक विमानों में से नीचे उतरते हैं तब उनके मस्तक पर अनुक्रम से १- मृग, २- भैस, ३- जंगली सूअर, ४- बकरा, ५- मेंढक, ६- घोड़ा, ७- हाथी,८- सर्प, ६- गेंडा, १० बृषभ-बैल आदि के प्रगट चिन्ह वाले मुकुट होते हैं । तथा वे मुकुट रत्नादि की कान्ति से प्रकाशित प्रकट रूप मृगादि के चिन्ह वाले होते हैं । इस तरह से प्रज्ञापना और औप पातिक सूत्र का चिन्ह के विषय में मत भिन्न होते हैं इस सम्बन्धी तत्व तो सर्वज्ञ भगवन्त ही जाने ।''
विवक्षवस्त्वमी अर्द्धमागध्या रम्यवर्णया । भाषन्ते चतुरस्वान्तचमत्कारकिरा गिरा ॥४०४॥