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(३४६)
अच्युत स्वर्ग के बाद रहे देवता अहमिन्द्र होने से स्वामी सेवकादि स्थिति नहीं होती है, क्योंकि वे कल्पातीत होते हैं । (३६६)
ते प्राग्जन्मो पात्तशस्तनामकर्मानुभावतः । न्यक्षसल्लक्षणोपेत सर्वाङ्गोपाङ्गशोभिताः ॥३६७॥
वे देव प्राग्जन्म में उपर्जित किये प्रशस्त नाम कर्म के प्रभाव से सम्पूर्ण सद् लक्षण से युक्त अंगोपांग से शोभित होते हैं । (३६७)
जात्यस्वर्णवर्णदेहा, आद्य संस्थान संस्थिताः । . .
अत्यन्त सुन्दराकाराः, सारपुद्गलयोनयः ॥३६८॥ . . . . जाति मान सोना के समान कान्तिवान देह वाले, प्रथम संस्थान (समचतुरस्र संस्थान) वाले होते हैं, अत्यन्त सुन्दर आकार वाले और सारभूत पदार्थ में से उत्पन्न हुए होते हैं । (३६८)
असृग्मांसवसामेदः पुरीषमूत्रचर्मभिः । अन्त्रास्थिश्मश्रुनखरोमोद्गमैश्च वर्जिताः ॥३६६॥
रूधिर, मांस, चर्बी, मेद वीष्ठा, मूत्र चर्म आतंरडे, हड्डी दाढी-मूंछ के बाल नख और रोम आदि से रहित होते हैं । (३६६)
कुन्देन्दु श्वेतदशनाः प्रवाल जित्वराधराः ।, धनान्जन श्याम के शपाशपेशलमौलयः ॥४००॥
इन देवताओं के दांत मच कुंद और चन्द्रमा के समान श्वेत होते हैं और उनके होठ प्रवाल से भी अधिक लाल वर्ण वाले होते हैं और उनके मस्तक, मेघ और अंजन समान श्याम केश पास से सुन्दर होते हैं । (४००)
तथोक्तमौपपातिके - "पंडुरससिस कल विमल निम्मल संखगोखीर फेण दग रय मणुलिया धवल दंत सेढी, तथा अंजण घण कसिणणि द्धरमणीयणिद्ध केसा" इत्यादि, संग्रहण्यां तु 'केसट्ठिमं सुन हरोम रहिया' इत्युक्तमिति ज्ञेयं ॥
श्री औपपातिक सूत्र में इस तरह कहा है - कला सहित धवल चन्द्रमा, निर्मल शंख, गाय का दूध, फेन, पानी के कण, कमल का कंद के समान सफेद दंत