SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३३८) है । (३४७) कहने का मतलब यह है कि देव की पूजा में प्रमार्जन करने का कल्प होता है । ऐसा कह सकते हैं । गोशीर्षचन्दननेनाथ, प्रत्यङ्गं पूज्यन्ति ताः । ... प्रत्येकमासां परिघापयन्ति वस्त्रयोर्युगम् ॥३४८॥ उसके बाद देवता उन प्रतिमाओं की प्रत्येक अंग में गोशीर्ष चन्दन से पूजा करते हैं । और प्रत्येक मूर्ति को वस्त्र युगल पहनाते हैं । (३४८) .. पुष्पामाल्यैर्गन्धचूर्णैर्वस्त्रैरामरणैरपि । पूजयित्वा लम्बयन्ति, पुष्पादामान्यनेकशः ॥३४६॥ ततः करतलक्षिप्तैः पन्चवर्णैर्मणीव कैः । ... चित्रोपचाररु चिरं, रचयन्ति भुवस्तलम् ॥३५०॥ . पुष्प की माला सुगन्धी चूर्ण, वस्त्राभूषण से परमात्मा की पूजा कर के अनेक पुष्प मालाएं चारों तरफ लटकाते हैं उसके बाद हस्त तल से पांच वर्ण के मणकाओ को उछालकर वे देव पृथ्वी पर अलग-अलग प्रकार के चित्रों से सजाते हैं । (३४६-३५०) पुरतोत्थ जिनार्चानामच्छै रजततण्डुलैः । लिखित्वा मङ्गलान्यष्टौ, पूजयन्ति जगद्गुरुन् ॥३५१॥ ततश्चन्द्र प्रभं वज़वैडूर्यदण्डमण्डितम् । करे कृत्वा मणिस्वर्णचित्रं धूपकडुच्छकम् ॥३५२ ।। दह्यमान कुन्दुरुक्क कृष्णागुरुतुरुष्ककै ।। धूपं दत्वा जिनेन्द्राणां, प्रक्रमतेस्तुति क्रियाम् ॥३५३॥ उसके बाद श्री जिनेश्वर भगवन्त की प्रतिमा के आगे स्वच्छ चान्दी के चावल से अष्ट मंगल आलेख-चित्रण कर जगतगुरु की पूजा करते हैं । वज्र रत्न और बैडुर्य रत्न के दण्ड से शोभते चन्द्र की प्रभा समान उज्जवल मणि और स्वर्ग के प्रकाशमय धूपदानी हाथ में लेकर जलते कुंदरुक्क, कृष्णागुरु, तुरुष्क आदि पदार्थ से श्री जिनेश्वरों के आगे धूप करके वे देवता स्तुति प्रारम्भ करते हैं । (३५१-३५३)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy