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क्र०
सं०
विषय
४३७ नक्षत्रों के विमानों के देवदेवियों की स्थिति
४३८ तारों के विमानों के देवदेवियों की स्थिति
४३६ ज्योतिषि विमानों में अल्पबहुत्वता
४४० ज्योतिषियों की अनुकूलता व
प्रतिकूलता
( xxxiv )
श्लोक
सं०
छब्बीसवां सर्ग
ऊर्ध्व लोक का निरूपण
४४६ शंखेश्वर भगवान की स्तुति ४५० ऊर्ध्व लोक का प्रारंम्भ
१७६४५७
४५८
१८१ ४५६
४६०
१८३ ४६१
४६२
१८४
क्र०
सं०
४६३
४४१ मुहुर्त जीवा का प्रयोजन विषय १८६ ४६४
में शंका
४६५ १६० ४६६
१६४
१६६
४४२ विपाक कला के हेतु ४४३ पाँच हेतु के विषय में शाताअशातना बिपाक
४४४ जन्मादि के समय ज्योतिषियों चार के शुभाशुभ कल
४४५ ज्योतिष शास्त्र की आवश्यकता २०५ ४४६ इस विषय में आगमों का
२१०
४६७
४६८
४६६
विषय
श्लोक
सं०
इन्द्रक विमानों के नाम
१३
सनत्कुमार आदि में कितने प्रतर १५
उर्ध्व लोक के कितने प्रतर है। १८ ऊर्ध्व लोक के विमान
४५१ ऊर्ध्व लोक का प्रमाण
४
४५२ सौधर्म - ईशान लोक का वर्णन ५ ४७४
४५३
आकार
४५४ स्थान, मान
४५५ प्रतर कितने है? ४५६ इन्द्रक विमान
१६
किस समुद्र पर कितने विमान है २२
विमानों के परस्पर अन्तर के
विषय में
प्रथम प्रतर में वृतादि तथा सब विमानों की संख्या कितनी
~
२८
विमानों का आकार
३१
वृतादि विमानों के कैसे
३४
तेरह प्रतरों में विमानों की संख्या ४० गोल - त्रिकोण- चौरस आदि ४२ रीति से बतानेके विषय में
दूसरे प्रतर में वृतादि तथा सब विमानों की संख्या कितनी
४५
४७
अभिप्राय
४४७ नरक्षेत्र के बाहर ज्योतिषीयों के २१४ ४७० चौथे प्रतर में वृतादि तथा सब ५१ विमानों की संख्या कितनी
विषय में
४४८ सर्ग समाप्ति
२१६ ४७१ पाँचवे प्रतर में वृतादि तथा सब ५२ विमानों की संख्या कितनी
तीसरे प्रतर में वृतादि तथा सब ४६ विमानों की संख्या कितनी
४७२ छठे - सातवें प्रतर में वृतादि तथा ५४ सब विमानों की संख्या कितनी
१
३४७३ ८-६-१० वें प्रतर में वृतादि तथा ५६ सब विमानों की संख्या कितनी ११-१२-१३ वें प्रतर में वृतादि ६० तथा सब विमानों की संख्या कितनी
५
७
६ ४७५ एक दिशा के पंक्तिगत विमानों ६४ की वृतादि तथा सर्व संख्या
१२