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( २६५) जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र संग्रहण्या द्यमि प्रायेण तु चन्द्र सूर्य विमानेषु जघन्यतो ऽपि पल्योपम चतुर्थ भाग एव स्थितिः किल उक्तेति ज्ञेयम् ॥
श्री जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र तथा संग्रहणी आदि ग्रन्थों के अभिप्राय से तो सूर्य और चन्द्र के विमानों में जघन्य स्थिति भी पल्योपम के चौथे विभाग ही कही
तुम्बा च त्रुटिता पर्वाभिधा एता भवन्त्यथ । सूर्येन्द्वोः सामानिकानां, स्त्रीणामपि सभा इमाः ॥१२६॥
इन तीनोंपर्षदा (सभा) के नाम अनुक्रम से १- तुम्बा २- त्रुटिता ३- पर्वा है । सूर्य और चन्द्र के सामानिक देवताओं की स्त्रियां-देवियों की भी यही सभा (पर्षदा) होती है । (१२६) __ननु पर्षत्रयं सर्व सुरेन्द्राणां निरूप्यते ।।
विशेषस्तत्र क इवान्तर्मध्यबाह्यपर्षदाम् ? ॥१२७॥
यहां शंका करते हैं कि - सर्व इन्द्रों की तीन पर्षदा का निरूपण तो होता है परन्तु बाह्य मध्यम और अभ्यंतर पर्षदा में विशेषता क्या है ? (१२७)
अत्र बुम :- शीघ्र मस्यन्तरा पर्षदाहूतोपैति नान्यथा ।
। प्रभाराकारणा रूपं,गौरवं सा यतोऽर्हति ॥१२८॥ मध्यमा पर्षदाहू ताऽनाहू ताऽप्यूपसर्पति । सा मध्यम प्रतिपत्ति विषयायदधीशितुः ॥१२६॥ अनाहूतैव बाह्यातु, पर्षदायाति सत्वरम् । कदापि नायकाह्वान गौरवं साहि नार्हति ॥१३०॥
इसका समाधान करते हैं - अभ्यन्तर पर्षदा इन्द्र महाराज के बुलाने के बाद आती है, इतना ही उन्हें भी 'आवश्यकता पड़ने पर स्वामी ने उसे बुलाना पड़ता है' इसके अनुसार का गौरव-महत्व को चाहते हैं । मध्यम पर्षदा बुलाने पर आती है और बुलाये बिना भी आती है वह पर्षदा अपने स्वामी की ओर से मध्यम गौरव को चाहते है, और बाह्य पर्षदा तो बिना बुलाये ही आती है, वह पर्षदा अपने स्वामी के आमंत्रण रूप गौरव को कभी भी नहीं चाहते है । (१२८-१३०)