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________________ (१७६) अस्मिन्नर्द्ध संख्ययाऽश्चिन्द्राश्च स्युर्द्विसप्ततिः। द्वीपे. संपूर्णेऽत्र चतुश्चत्वारिंश हि ते ॥१४॥ शेष आधे पुष्करार्ध में - मानुषोत्तर पर्वत बाद के पुष्करार्ध में बहत्तर चन्द्र और बहत्तर सूर्य है । इससे पुष्कर नाम के सम्पूर्ण द्वीप के अन्दर एक सौ चवालीस सूर्य और एक सौ चवालीस (१४४) चन्द्र होते हैं । (१४) तथाहि - कालोदवा॰ रारभ्य, संख्यां शीतोष्णरोचिषाम् । - निश्चेतुमेतत्करणं, पूर्वाचार्यैः प्ररूपितम् ॥१५॥ कालोदधि समुद्र से लेकर आगे सर्वत्र चन्द्र सूर्य की संख्या निश्चय करने के लिए पूर्वाचार्यों ने इस तरह से करण रीति कही है । (१५) विवक्षित द्वीप वाद्धौं, थे स्युः शीतोष्णरोचिषः । त्रिनास्ते प्राक्तनैर्जम्बू द्वीपादि द्वीप वार्द्धिगैः ॥१६॥ सूर्येन्दुभिर्मीसिताः स्युर्यावन्तः शशि भास्कराः । अनन्तरानन्तरे स्युर्दी पे तावन्त एव ते ॥१७॥ चतुश्चत्वारिंशमेवं शतं स्युः पुष्करेऽखिले । द्वयोमतदद्धयोस्तस्माद् द्विसप्ततिर्द्धिसप्ततिः ॥१८॥ एवं शेषेष्वपि द्वीपवार्धिष्विन्दु विवस्वताम् । अनेनैव करणेन, कार्यः संख्या विनिश्चयः ॥१६॥ वह इस तरह से. - विवक्षित द्वीप अथवा समुद्र में जितने चन्द्र या सूर्य है उसे तीन द्वारा गुणा करे और उसमें पूर्व के जम्बू द्वीपादि द्वीप समुद्र के सूर्य-चन्द्र की संख्या मिलाने से आगे से आगे के सूर्य चन्द्र की संख्या आती है । इस गिनती से ही पूरे पुष्कर द्वीप में एक सौ चवालीस सूर्य और चन्द्र आते है । इसी तरह से कालोदधि समुद्र में सूर्य चन्द्र की संख्या बयालीस की है और उसे तीन से गुणा करने से (४२४३= १२६) एक सौ छब्बीस आते हैं और उसमें जम्बूद्वीप के दो, लवण समुद्र के चार, धातकी खण्ड के बारह इस तरह कुल अठारह मिलाने से सम्पूर्ण पुष्कर द्वीप में सूर्यो की संख्या एक सौ चवालीस की होती है । इसी ही तरह . चन्द्र में भी समझना चाहिए । और पुष्कराद्वीप के दूसरे आधे बहत्तर सूर्य-चन्द्र
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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