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२१२ जानना अर्थात् ८८१४६३१ मूल ध्रुव राशि में २१२ - ४१५७६ १७३/२१२ होता है । (६३)
त्रिपन्चाशत्सहस्राणि, द्वादशा पन्चशत्यपि ।
शतं नव नवत्याढयमंशाश्च मध्य विस्तृतिः ॥६४ ॥
मध्य का विस्तार तिरपन हजार पांच सौ बारह योजन और दो सौ बारह में से एक सौ निन्यानवे अंश (५३५१२ १६६/२१२) जानना अर्थात् ११३४४७४३ मध्य ध्रुव राशि में २१२ = ५३५१२- १६६/२१२ होता है । (६४)
पन्चषष्टिं सहस्राणि योजनानां चतुःशतीम् ।
षट्चत्वारिंशां लवांश्च त्रयोदशान्त विस्तृतः ॥६५॥ - और बाह्य विस्तार पैंसठ हजार चार सौ छियालीस योजन और दो सौ बारह में से तेरह अंश (६५४४६ १३/२१२) जानना । अर्थात १३८,७४५६५ बाह्य ध्रुव राशि में २१२ = ६५४४६ १३/२१२ होता है । (६५)
मध्य भागेऽस्य वैताढयो लक्षाण्यष्टौ सचायतः । धातकी खण्ड वैताढयवच्छेषंत्विह भाव्यताम् ॥६६॥
इस भरत क्षेत्र के मध्य में वैताढय पर्वत आया है । उसकी लम्बाई आठ लाख योजन की है, और उसका स्वरूप धातकी खण्ड के भरत के वैताढय के समानं जानना । (६६) . .. . अन्येऽपि दीर्घ वैताढयाः स्युः सप्तष्टिरीद्दशाः ।
भरतैरवत क्षेत्र विदेह विजयोद्भवाः ॥६७॥
भरतक्षेत्र. ऐस्वत क्षेत्र तथा महाविदेह क्षेत्र की विजय में रहे अन्य भी ऐसे सढसठ दीर्घ वैताढ्य पर्वत है । (६७)
उत्तरार्द्धमध्यखण्डे, गाङ्गसैन्धवकुण्डयोः ।
मध्ये वृषभकूटोस्ति, जम्बूद्वीपर्षभाद्रिवत् ॥८॥
इस पुष्करार्ध द्वीप के भरत क्षेत्र के उत्तरार्ध मध्य खण्ड में गंगा और सिन्धु के कुंड के मध्य में जम्बू द्वीप के ऋषभकूट समान ऋषभकूट आया है । (६८)