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सका
(११२) तेईसवां सर्ग
पुष्करवर द्वीप का स्वरूप वक्ष्येऽथ पुष्करवर द्वीपं कैकय देशवत् । विशेषितार्द्धमावेष्टय, स्थितं कालोदवारिधिम् ॥१॥
कैकय देश अर्थात् आर्यदेश साढे पच्चीस कहलाते हैं उसमें आधा आर्यदेश के समान शेष रहा है वह आधा विभाग है और कालोदधि समुद्र से लिप्त हुआ है ऐसे पुष्करवर द्वीप का अब मैं वर्णन करता हूं । (१)
वक्ष्यमाण स्वरूपैर्यच्छोभितश्चारूपुष्करैः । .. ततोऽयं पुष्करवर इति प्रसिद्धिमीयिवान् ॥२॥
जिसका स्वरूप आगे कहा जायेगा, वह सुन्दर पुष्कर (कंमल विशेष) से यह द्वीप शोभायमान होता है, इससे यह द्वीप पुष्कर द्वीप के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। :
(२)
चक्रवालतयैतस्य, विस्तारो वर्णितः श्रुते । योजनानां षोडशैव लक्षा न्यक्षार्थवेदिभिः ॥३॥
सूक्ष्म अर्थ के जानकार महापुरुषोंने आगम में इस द्वीप का चक्रवाल विस्तार सोलह लाख योजन का कहा है । (३) . ,
द्वीपस्यास्य, मध्यदेशे, शैलोऽस्ति मानुषोत्तरः ।
अन्विताख्यो नरक्षेत्र सीमाकारितयोत्तरः ॥४॥
इस द्वीप के मध्य विभाग में मानषोत्तर नामक पर्वत है । वह मनुष्य क्षेत्र की सीमा करने वाला होने से और मनुष्य क्षेत्र के बाद रहा हुआ होने से वास्तविक नाम वाला है । (४)
उभयोः पार्श्वयोश्चारू वेदिका वनमण्डितः । योजनानामेकविंशान् शतान् सप्तदशोच्छ्रितः ॥५॥
यह मानुषोत्तर पर्वत के दोनों तरफ सुन्दर वेदिका और वन से सुशोभित है और उसकी ऊंचाई सत्रह सौ इक्कीस (१७२१) योजन की है. । (५).