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________________ (७३) इन नदियों के कुंडों की लम्बाई-चौड़ाई नौ सौ साठ (६६०) योजन की है और द्वीप की लम्बाई-चौड़ाई एक सौ अट्ठाईस (१२८) योजन की है । (८७) षट्त्रिंशं शतमष्टौ च पुनरष्टौ चतुष्टयम् । चतुर्विधानामित्यासामाद्यन्तोद्विद्धता क्रमात् ॥८८॥ गव्यूतं योजने सार्द्ध, द्वौ क्रोशौ पन्चयोजनी । योजनं दश चैतानि, योजने द्वे च विंशतिः ॥८७॥ गंगा सिंन्धु, रक्ता, रक्तवती आदि एक सौ छत्तीस (१३६ ) नदियां प्रारंभ में गहराई एक कोस की है और अन्त में अढ़ाई योजन की है । रोहिता, रोहितांशा, सवर्णकूला, रूप्यकुज ये आठ नदियां प्रारंभ गहराई दो कोस की है और अन्त में पांच योजन की है । हरिकान्ता, हरिसलिला, नारिकांता नर कान्ता ये आठ नदियां प्रारंभ में गहराई एक योजन की है और अन्त में दस योजन है । शीता शीतोदा ये चार नदियां प्रारंभ में गहराई दो योजन की है और अन्त में बीस योजन है । (८८-८६) 1 अर्न्तनदीनां सर्वासामपि प्रारम्य मूलतः । पर्यन्तं यावदुद्वेधस्तुल्यः स्यात्पन्वयोजनी ॥६०॥ चौबीस अन्तर्नदियां भी गहराई प्रारंभ से अन्त तक एक समान पांच योजन की ही होती है । (६०) स्वकीय मूल विस्तृत्या, जिह्विका विस्तृति: समा । मूलो द्वेध समश्चासां सर्वासां जिह्विकोच्छ्रयः ॥ ६१ ॥ इन सब नदियों का मूल विस्तार जितना ही जिह्विका का विस्तार है और मूल की गहराई जितनी जिह्विका की मोटाई है । (६१) उक्त शेषं तु स्वरूपं, सकलं वेदिकादिकम् । एतास्वप्यनुसंधेयं, जम्बू द्वीप नदी गतम् ॥६२॥ इतना वर्णन के बाद शेष रही वेदिका आदि का सकल स्वरूप जम्बू द्वीप की नदी के समान इन नदियों में समझ लेना । (६२)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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