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विमान होते हैं । (६३१) इस तरह दोनों कारणों से किसी भी रीति से युक्तिमत् नहीं है । ताराओं की संख्या का यहां प्रयोजन ही नहीं है।'
वारूण्यां दशमी त्याज्या द्वितीया पौष्णभे तथा । शेषोडुष्वशुभा स्वस्वतारासंख्यासमातिथिः ॥६३२॥
इति तारा संख्या १०॥ शततारा नक्षत्र में दसवीं अशुभ है, रेवती में द्वितीया अशुभ है, शेष नक्षत्रों में उनके-उनके ताराओं की संख्या हो, उस संख्या वाली तिथि अशुभ है, यह अशुभ तिथियां त्याग करने योग्य है । (६३२) तारा संख्या पूर्ण हुई । (१०)
गो शीर्ष पुदगलानां या दीर्घा श्रेणिस्तदाकृतिः । गौशीर्षावलि संस्थानमभिजित् कथितं ततः ॥६३३॥
अब नक्षत्रों के आकार के विषय में कहते हैं - अभिजित नक्षत्र गाय के श्रेणिबन्ध मस्तक हो इस तरह आकार का होता है, इस कारण से इसका गोशीर्षावलि समान संस्थान कहलाता है । (६३३) ।
कासाराभं श्रवणभं पक्षि पंजरसंस्थिताः । , .
धनिष्टा शततारा च पुष्पोपचारसंस्थिताः ॥६३४॥ " श्रवण नक्षत्र का तालाव जैसा आकार है, धनिष्ठा पक्षि के पिंजरे के आकार का है और शततारा पुष्पमाला के आकार समान है । (६३४)
पूर्वोत्तरा भद्रपदे अर्धार्धवापि कोपमे ।' एतदर्ध द्वय भोगे पूर्णा वाप्याकृतिर्भवेत् ॥६३५॥
पूर्व भाद्रपदा और उत्तरभाद्रपदा दोनों आधी-आधी वावड़ी के आकार सदृश है, और दोनों को एकत्रित करें तो एक सम्पूर्ण वावड़ी जैसा आकार होता है। . (६३५)
पौष्णं च नौसमाकारं अश्वस्कन्धाभमश्विम् ।
भरणी भगसंस्थानां क्षुरधारेव कृतिका ॥६३६॥
रेवती नक्षत्र वाहन समान है, अश्विनी नक्षत्र घोड़े की कंधा समान है, भरणी भगाकार से है, और कृतिका अस्त्र की धार के समान है । (६३६)
शकटोद्धीसमा ब्राह्मी मार्ग मृगसिरस्समम । आर्द्रा रूधिरविन्द्वाभा पुनर्वसू तुलोपमौः ॥६३७॥