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स्वस्वमण्डलपरिधिमण्डलच्छे दराशिना । विभज्यते यल्लब्धं तत्सुधिया ताड्यते किल ॥६००॥ उक्तेन्दु कौडूभागात्ममुहूर्तगतिराशिमिः । मुहूर्तगतिरेषां स्यात् पूर्वोक्ता योजनात्मिका ॥६०१॥ युग्मं ॥ त्रैराशिकेन यदि वा प्रत्ययोऽस्या विधीयताम् । किं तत् त्रैराशिकमिति यदीच्छा तन्निशम्यताम् ॥६०२॥
यहां शंका का समाधान करते हैं, कि अपने-अपने मंडल की परिधि को मंडल छेद के अंक द्वारा भाग में जो संख्या आती है, उसे यथोक्तं चन्द्र, सूर्य अथवा नक्षत्र के अंश रूप मुहूर्त गति की संख्या द्वारा गुणा करते, पूर्वोक्त योज़न में मुहूर्त गति आती है । अथवा तो त्रिराशि की रीति से निश्चय करना चाहिए उस प्रमाण से। (६००-६०२)
स्यात्मण्डलापूर्तिकालोविधोः प्रागवत्सवर्णितः। पंचविंशाः शताः सप्त सहस्राश्च त्रयोदश ॥६०३॥
चन्द्र मंडल सम्पूर्ण करने का काल पूर्व में कहा है, उसके अनुसार १३७२५ मुहूर्त अंश होते हैं । (६०३) .
· अस्योपपत्ति योजनात्मक मुहूर्त गत्यवसरे दर्शितास्ति ॥ - यह पूर्व में योजनात्मक मुहूर्तगति समझाते सिद्ध किया है। 'ततश्च- पंचविंशसप्तत्रयोदशसहस्रकैः ।
- मुहूर्ताशैः लक्षमष्टानवतिश्चशतायदि॥६०४॥ ... मण्डलांशा अवाप्यन्ते ब्रूताप्यन्ते तदा कति । - एके नान्तर्मुहूर्तेन राशित्रयमिदं लिखेत ॥६०५॥ युग्मं ॥
उस कारण से तेरह हजार सात सौ पच्चीस मुहूतांश में यदि एक लाख नौ हजार आठ सौ मंडलांश आते हैं, तो एक अन्त मुहूर्त में कितने मंडलांश आते हैं, इसके लिए तीन राशि लिखनी चाहिए । (६०४-६०५)
आद्यो राशिः मुहूर्तांशरूपोऽन्त्यस्तु मुहूर्त्तकः । सावार्थमेकविंशेद्विशत्यान्त्यो निहन्यते ॥६०६॥ वह इस प्रकार १३७२५, १०६८००, १, इन तीन राशि में आद्य राशि मुहूर्तांश