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________________ (४४१) मुहर्तगतिरस्य या विवक्षित मण्डले । यच्चतस्मिन् दिनमान द्वयमेतत् पृथग् न्यसेत् ॥२२४॥ मुहूर्त गतिरेषाऽथ दिनमानेन गुण्यते । एकार्कस्य तदैकाहः प्रकाश्यं क्षेत्रमाप्यते ॥२२५॥ यावच्चैकाहःप्रकाश्यं क्षेत्र मेकत्रमण्डले । तदर्धेन मनुष्याणां भवेत् दृग्गोचरो रविः ॥२२६॥ अयं भाव :- यावत्क्षेत्रं दिनार्धन भानुः भावयितुं क्षमः । दृश्यते तावतः क्षेत्रात् मण्डलेएवखिलेष्वपि ॥२२७॥ विवक्षित मंडल.में सूर्य की जो मुहूर्त गति होती है वह संख्या एक तरफ रखो और उस मंडल में जो दिनमान हो वह संख्या एक तरफ रखो, दोनों संख्या का गुणा करने पर जो जो संख्या आती है, वह सूर्य का एक दिन में जितना क्षेत्र प्रकाशित करता है उतना प्रमाण समझना, और एक मंडल में सूर्य जितना क्षेत्र एक दिन में प्रकाशित करता है, उससे आधा क्षेत्र जितना दूर रहे मनुष्य को सूर्य दृष्टिगोचर होता है। इसका भावार्थ यह है कि - आधे दिन में सूर्य जितने क्षेत्र को प्रकाशित करता है उतने क्षेत्र के लोगों को सूर्य उतनी दूर से दृष्टिगोचर होता है । (२२४-२२७) यथा पंच सहस्राणि योजनानां शत द्वयम । एक पंचाशमेकोत्रिशदंशाश्च षष्टिजाः ॥२२८॥ मुहर्त गतिरेषा या प्रोक्ताऽभ्यन्तर मण्डले । गुण्यते सा दिनार्धन मुहूर्तनवकात्यना ॥२२६॥ सप्तचत्वारिंशदेवं सहस्राणि शतद्वयम् । त्रिषष्टिश्च योजनानां षष्टयंशा एक विंशति ॥३३०॥ उदगच्छन्नियतः . क्षेत्रात् भानुरस्तमयन्नपि । इहत्यैः दृश्यते लौकः सर्वाभ्यन्तर मण्डले ॥२३१" ततश्चैतत् द्विगुणितमुदयास्तान्तरं भवेत् । प्रकाश क्षेत्रमप्येतावदेवो भयतोऽन्वितम् ॥२३२॥ जैसे कि पांच हजार दो सौ इक्यावान पूर्णांक उन्तीस साठांश ५२५१ २६/६० योजन जो अंदर के मंडल में रहे सूर्य की मुहूर्त गति कही है, उसे आधे दिन द्वारा अर्थात् नौ मुहूर्त से गुणा करना अतः सैंतालीस हजार दो सौ तिरसठ पूर्णांक इक्कीस साठांश (४७२६३ २१/६०) योजन आयेगा, इतने क्षेत्र में रहे लोगों को दूर
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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