________________
(२६४)
सीमा पर 'आशीविष' नामक पर्वत है । उसके बाद 'नलिन' नाम से विजय आया है । इसकी मर्यादा अन्तर्वाहिनी नदी के द्वारा है । इसके पश्चिम में 'कुमुद' नाम का विजय है, उसकी सीमा 'सुखावह' पर्वत के कारण है, उसके बाद 'नलिनावती' नाम का विजय है । (४६-५१) .
नमस्यते सुकृतिभिः सांप्रतं बाहुतीर्थकृत् । । विजये विहरन्नस्मिन् शतक तुशतस्तुतः ॥५२॥
इस विजय के अन्दर सैंकड़ो इन्द्र महाराज जिसकी सेवा कर रहे हैं, और पुण्यशाली जीवात्मा नमन कर रहे हैं, ऐसे श्री बाहु स्वामी तीर्थंकर परमात्मा वर्तमान काल में विहार कर रहे है । (५२) .
शीतोदादक्षिणतटाश्रितं वनमुखं ततः । . . . तत्संमुखं वनमुखं शीतोदोत्तरकूलजम् ॥५३॥ .
उसके बाद शीतोदा नदी के दक्षिण तट पर वन मुख आता हैं, और इसके सन्मुख उसके उत्तर तट पर भी वनमुखं आता है । (५३) ...
वनस्यैतस्य पूर्वस्यां विजयो वप्रनामकः । पूर्व तस्तस्या चन्द्राख्यो वक्षस्कारगिरिर्भवेत् ॥५४॥
इन वन की पूर्व दिशा में वप्र' नाम का विजय आता है, और इसके भी पूर्व में चन्द्र नामक वक्षस्कार पर्वत आया है । (५४) ।
विजये विहरत्यस्मिन् सुबाहुर्जगदीश्वरः ।
अधुना देशनासारैः पुनानो भव्यमडलम् ॥५५॥
इस 'वप्र' नामक विजयं के अन्दर वर्तमान काल में सारभूत उपदेश द्वारा भव्यजनों को पवित्र करने वाले श्री सुबाहु जिनेश्वर भगवान विहार कर रहे हैं ।
(५५)
ततस्सुवप्रविजयस्ततो नघूर्मिमालिनी । ततो. महावप्रनामा विजयः कथितो जिनैः ॥५६॥ ततः सरोनाम गिरिस्ततो वप्रावती भवेत् । विजयोऽन्तेऽस्य गम्भीर मालिनी कथिता नदी ॥५७॥ .
उसके बाद सुवप्र विजय है, और सीमा में उर्मिमालिनी नाम की नदी है, उसके बाद माहवप्र नाम से विजय है, और सीमा पर सुर नाम का पर्वत है, फिर