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________________ (१७) पूर्वरीत्याथ बालाग्रैः खण्डी भूतैरसंख्यशः । पूर्णात्पल्यात्तथा खण्डं प्रतिवर्षशतं हरेत् ॥१०१॥ कालेन यावता पल्य: स्यानिर्लेपोऽखिलोऽपि सः। तावान्कालो भवेत्सूक्ष्ममद्धा पल्योपमं किल ॥१०२॥ एतेषामथ पल्यानां दशमिः कोटि कोटिभिः । सूक्ष्ममद्धामिधं ज्ञान सागराः सागरं जगुः ॥१०३॥ इस तरह दस कोटा कोटि बादर आधा पल्योपमों का एक बादर अद्धा सागरोपम होता है, इसी तरह पहले कहे अनुसार केशाग्रों के असंख्यात् टुकड़े करके पूर्वोक्त प्रकार से ही पूर्वोक्त नाप वाला पल्योपम है अर्थात् कुएं में भरकर उसके बाद उसमें से प्रत्येक सौ वर्ष में एक-एक टुकड़ा निकालकर कुआं खाली करने में जितना समय लगता है वह सूक्ष्म आधा पल्योपम कहलाता है और इतने दस कोटा कोटि पल्योपम का एक सूक्ष्म' आधा सागरोपम कहलाता है। (६८ से १०३) सूक्ष्माद्धापल्यवाद्धिभ्यामाभ्यां मीयन्त आर्हतैः । आयूंषि नारकादीनां कर्म कायस्थिती तथा ॥१०४॥ नरक आदि का आयुष्य तथा कर्मों की स्थिति तथा पृथ्वी आदि जीवों की कायस्थिति आदि (जीवन काल) यह सूक्ष्म आधा पल्योपम और सागरोपम द्वारा मापा जाता है। (१०४) एतेषामेव वार्डीनां दशभिः कोटिकोटिभिः । उत्सर्पिणी भवेदेका तावत्येवावसर्पिर्णी ॥१०॥ इस तरह दस कोटा कोटि सागरोपम के काल को एक को 'उत्सर्पिणी' काल नाम दिया है और दूसरा 'अवसर्पिणी' काल भी इतना ही होता है । (१०५) एकादि सप्तन्तघस्त्ररूढ केशाग्र राशिभिः । भृतादुक्त प्रकारेण पल्यात्पूर्वोक्त मानतः ॥१०६॥ तत्तद्वालग्रसंस्पृष्ट ख प्रदेशापकर्षणे । समये समये तस्मिन् प्राप्ते निःशेषतां तथा ॥१०७॥ कालचक्रैरसंख्यातैर्मितं तत्क्षेत्र नामकम् । बादरं जायते पल्योपमेवं जिनैर्मतम् ॥१०८॥ त्रिभिर्विशेषकम् इस तरह पल्योपम और सागरोपम के तीन भेद में से प्रथम उद्धार और
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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