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________________ (१६) रोम खंड कहा है- यह रोम खण्ड पूर्व में कहे अनुसार पूर्वोक्त कुएं में भर देना फिर समय-समय में इसमें से एक-एक बाहर निकलना । वे जितने समय में कुएं में से सारे बाहर निकलते रहें और कुआं सम्पूर्ण खाली हो जाय उतने समय को 'सूक्ष्म' उद्धार पल्योपम कहते हैं । इसका मान संख्यात करोड़ों वर्षों का होता है। (८८ से ६४) सुसूक्ष्मोद्धार पल्यानां दशभिः कोटि कोटिभिः । सूक्ष्मं भवति चोद्धाराभिधानं सागरोपमम् ॥ ६५ ॥ दस कोटा कोटि सूक्ष्म उद्धार पल्योपम का एक सूक्ष्म उद्धार सागरोपम होता है। (६५) आभ्यां सागर पल्याभ्यां मीयन्ते द्वीप सागराः । अस्ताः सार्द्धद्वि सागर्याः समयैः प्रमिता हि ते ॥ ६६ ॥ यद्वैतासु पल्य कोटा कोटींषु पञ्च विंशतौ । यावन्ति बाल खण्डानि तावन्तो द्वीप सागरा ॥६७॥ यह सागरोपम और पल्योपम दोनों मान (नाप-पैमाना ) सर्व द्वीप और सर्व समुद्रों के नाप के लिए है क्योंकि अढाई सूक्ष्म उद्धार सागरोपम का जितना समय है उतनी ही संख्या द्वीप समुद्र की है अथवा इस तरह भी कहलाता है कि पच्चीस कोटा कोटि सूक्ष्म उद्धार पल्योपम में जितने रोमखण्ड और समय है उतनी संख्या द्वीप समुद्रों की है। (६६-६७) एकादि सप्तान्त दिनोद्गतैः केशाग्र राशिभिः । भृतादुक्त प्रकारेण पल्यात्पूर्वोक्त मानतः ॥ ६८ ॥ प्रति वर्ष शतं खण्डमेकमेकं समुद्धरेत् । निशेषं निष्टिते चास्मिन्नद्धापल्यं हि बादरम् ॥६६॥ युग्मम् एक से लेकर सात दिन में उत्पन्न हुआ मस्तक का केश पूर्वोक्त कुएं में पूर्वोक्त अनुसार भरकर फिर उसमें से प्रति सौ वर्ष में एक-एक केश बाहर निकालते, जितने वर्ष (समय) लगें उतने समय का एक बादर' अर्द्ध पल्योपम' कहा है। (६८-६६) एतेषामथ पल्यानां दशभिः कोटि कोटिभिः । भवेद्दरमद्धाख्यं जिनोक्तं सागरोपमम् ॥ १०० ॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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