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________________ (४८६) योजनानि त्रीणि सार्धान्युद्वेधोऽत्र महोदधेः । सप्त चत्वारिंशदत्र गुहाः सन्त्यति तामसाः ॥१६॥ आद्य संहनननास्तासु वसन्त्युरुपराक्रमाः । नरा जलचरा मद्य मांस स्त्री भोग लोलुपाः ॥१७॥ दुर्वणाः कठिन स्पर्शाः भीषणा घोरदृष्टयः । अद्धयर्थ द्वादश कर देहाः संख्येय जीविताः ॥ १८ ॥ जहां सिन्धु नदी व लवण समुद्र मिलता है, वहां से दक्षिण की ओर पचपन योजन ऊपर आयी एक वेदिका के अन्दर साढ़े बारह योजन प्रमाण एक भयानक स्थान है, वहां साढ़े तीन योजन समुद्र की गहराई है और सैंतालिस अन्धकारमय गुफाएं हैं। उसके अन्दर प्रथम संघयण वाले, पराक्रमी, मद्य, मांस और स्त्री लोलुप जलचर मनुष्य रहते हैं। उनका रंग काला है, स्पर्श कठोर है और दृष्टि घोर भयानक है, साढ़े बारह हाथ की उनकी काया होती है और संख्यात वर्ष का उनकी आयुष्य होता है। (१४ से १८) तत्र रत्नद्वीपमस्ति स्थलात् संतापदायकात् । वारिधौ योजनैरेक त्रिंशता भूरिमानवम् ॥१६॥ घरट्टान् वाज्रिकांस्तेऽथ मनुष्यास्तन्निवासिनः । लिम्पन्ति मद्यैर्मासैश्च तेषु तानि क्षिपन्ति च ॥२०॥ मद्यमांसालाबुपात्रैः प्रपूर्य बहनानि ते । गच्छन्ति जलधौ मद्य मांसैस्तान् लोभयन्ति च ॥२१॥ मद्यमांसास्वाद् लुब्धास्ततस्तदनुपातिनः । निपतन्ति घरट्टेषु क्रमात्ते जल मानुषा ॥२२॥ इस सन्तापदायक स्थान से इक्कीस योजन दूर, समुद्र के बीच अनेक मनुष्यों की बस्ती वाला रत्नद्वीप नामक द्वीप है। वहां के मनुष्य के पास वज्रमय बनी चक्की होती है, उस चक्की को वे मद्य-मांस से लेप करते हैं और वे वस्तुएं उसमें डालते भी हैं। मद्य-मांस भरी हुई तुम्बी के वाहन भरकर वे समुद्र में जाते हैं और उस मद्य-मांस द्वारा उन जलचर मनुष्यों को आकर्षित करते हैं । अत: इन वस्तुओं के स्वाद में लुब्ध होकर ये जल- मनुष्य इनके पीछे पड़कर क्रमश: इन घाटियों में गिरते हैं। (१६ से २२)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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