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________________ (४६५) यह मान द्वार है। (३२) द्वारण्यथोक्त शेषाणि पंचैतेषां मनीषिभिः । भाव्यानीह वक्ष्यमाणगर्भोद् भव मनुष्यवत् ॥२१॥ - इति द्वार पंचकम् ॥३३-३७॥ इनके शेष पांच द्वार ३३ से ३७ तक के गर्भज मनुष्य के अनुसार जानना जो वह आगे कहे जायेंगे। (२१) - इस तरह संमूर्छिम मनुष्य के ३७ द्वारों के विषय में कहा है। अब गर्भज मनुष्यों के द्वार के विषय में कहते हैं: कर्माकर्म धरान्तीप भवा गर्भजा नरास्त्रिविधाः । स्युः पंचदश त्रिंशत् षट्पंचाशद्विघाः क्रमतः ॥२२॥ अब गर्भज मनुष्य का प्रथम द्वार कहते हैं । वह इस प्रकार-गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं; १- कर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले, २- अकर्म भूमि में उत्पन्न होने वाले और ३- अन्तर्वीप में उत्पन्न होने वाले। इन तीनों के अनुक्रम से पंद्रह, तीस और छप्पन भेद लेते हैं। (२२) ... म्लेच्छा आर्या इति द्वधा मनुजाः कर्म भूमिजाः । • म्लेच्छाः स्युः शक यवनमुरुंड शबरादयः ॥२३॥ कर्मभूमि में उत्पन्न हुए मनुष्य दो प्रकार के होते हैं- म्लेच्छ और आर्य। - इनमें शक, यवन, मुरुंड और शबर आदि म्लेच्छ जाति हैं। आर्याः पुनर्द्विधाः प्रोक्ता ऋद्धि प्राप्तास्तथापरे । .. ऋद्धि प्राप्तास्तत्र षोढा प्रज्ञप्ताः परमेश्वरैः ॥२४॥ . अर्हन्त सार्वभौमाश्च महैश्वर्य मनोहराः ।। बलदेवा वासुदेवा स्युर्विद्याधर चारणाः ॥२५॥ आर्य के दो भेद हैं। समृद्धिशाली और समृद्धि के बिना। इसमें समृद्धिशाली ... छः प्रकार के होते हैं; १- महान् ऐश्वर्यशाली श्री अर्हत भगवंत, २- चक्रवर्ती, . ३- बलदेव, ४- वासुदेव, ५- विधाधर और ६- चारण। (२४-२५) . अनुद्धयो नवविधाः क्षेत्र जाति कुलार्यकाः । कर्मशिल्प ज्ञान भाषा चारित्र दर्शनार्यकाः ॥२६॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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