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________________ (८) सर्व प्राणियों का शरीर 'उत्सेध' अंगुल के माप से मापा जाता है और पर्वत तथा पृथ्वी आदि जो शाश्वत पदार्थ हैं वे 'प्रमाण' अंगुल के माप से मापे जाते है। उसमें भी पृथ्वी आदि को अंगुल की लम्बाई द्वारा मापा जाता है । इस प्रकार कईयों का मत है, जबकि अन्यों का ऐसा कहना है कि इसका क्षेत्रफल निकाला जाता है तथा इस तरह भी कहने वाले हैं कि इसकी चौड़ाई ही इसका माप है । इस तरह तीन पक्ष हैं । इन तीन में प्रामाणिक पक्ष कौन सा है ? इसका निश्चय तो परमात्मा ही कर सकते हैं । (४२ से ४४) __ यहां पहला पक्ष स्वीकार करें तो एक योजन में 'उत्सेध' अंगुल के माप में चार सौ योजन होता है, दूसरे पक्ष को स्वीकार करें तो हजार योजन होता है और तीसरा पक्ष स्वीकार करें तो दस कोश होता है। श्री 'अनुयोग द्वार' की चूर्णी में तीसरा पक्ष ही स्वीकार किया है। उसमें कहा है कि पृथ्वी आदि का मान प्रामाणांगुलों से निकलता है और यह मान जितने प्रमाणांगुल की इसकी चौड़ाई है वह समझना। मुनि चन्द सूरि रचित 'आंगुलसप्ततिका' ग्रन्थ में कहा है कि- 'पृथ्वी आदि का क्षेत्रफल ही इसका माप है इस तरह कईयों का मानना है, अन्य ने वस्तु की लम्बाई ही माप माना है। परन्तु सूत्र में इस तरह नहीं कहा है।' इसकी विस्तार युक्तचर्चा के लिए उनका 'अंगुलसप्ततिका' नामक ग्रन्थ अध्ययन करें।' वापी कूप तडागादि पुर दुर्ग गृहादिकम् । वस्त्र पात्र विभूषादि शय्या शस्त्रादि कृत्रिमम् ॥४५॥ इन्द्रियाणां च विषयाः सर्वमेयमिदं किल । आत्मांगुलैर्यथामानमुचितैः स्वस्ववारके ॥४६॥ बावड़ी, कुआं, तालाब आदि; नगर, किला, घर आदि, वस्त्र, पात्र, आभूषण आदि तथा शस्त्रादि सर्व कृत्रिम पदार्थ हैं और इसके उपरांत सर्व इन्द्रियों के विषय हैं। इन सबका माप 'आत्मांगुल' द्वारा निकालना चाहिए और वह भी यथास्थित मानपूर्वक और इसका यथोचित स्व-स्व बार में निकालना चाहिए । (४५-४६) आत्मोत्सेध प्रमाणाख्यं त्रैधमप्यंगुलं त्रिधा । सूच्यंगुलं च प्रतरांगुलं चापि घनांगुलम् ॥४७॥ पूर्व कथित उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल और आत्मांगुल’- इन प्रत्येक के तीनतीन भेद होते हैं । १- सूच्यंगुल, २- प्रतरांगुल और ३- घनांगुल । (४७) एक प्रदेश बाहल्य व्यासैकांगुल दैर्ध्य युक्। . नभः प्रदेश श्रेणिर्या सा सूच्यंगुलमुच्यते ॥४८॥ .
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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