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________________ (७) वस्तुतः पुनरौत्सेधात्सार्द्ध द्विगुण विस्तृतम् । चतुः शत गुणं दैध्य प्रमाणंगुल मा स्थितम् ॥३८॥ और यहां दृष्टांत देते हैं - जैसे कि चार अंगुल लम्बा और अढाई अंगुल चौड़ा तख्ता हो, उसको एक-एक अंगुल चौड़ा कर दें तो वह दस अंगुल लम्बाई में होता है। अतः वस्तुतः उत्सुधांगुल से अढाई गुना चौड़ा और चार सौ गुणा लम्बा प्रमाणांगुल का माप आता है। (३७-३८) एतच्च भरतादीनामात्मांगुलतया मतम् । अन्य काले त्वनियत मानमात्मांगुल भवेत् ॥३६॥ यस्मिन्काले पुमांसो ये स्व कीयांगुल मानतः । अष्टोत्तर शतोत्तुंगा आत्मांगुलं तदंगुलम् ॥४०॥ एतत्प्रमाणतो न्यूनाधिकानां तु यदंगुलम् । तत्स्यादात्मांगुलाभासं न पुनः परमार्थिकम् ॥४१॥ ३- आत्मांगुल - जिस काल में जो मनुष्य अपनी अंगुल के माप से एक सौ आठ अंगुल ऊँचा हो उसका अंगुल 'आत्मागुंल' कहलाता है । यह प्रमाण 'भरत' आदि के काल के मनुष्यों के आत्मांगुल का माप से माना गया है क्योंकि अन्य काल में आत्मांगुल का प्रमाण अनिश्चय होता है। यह एक सौ आठ अंगुल के माप करते जिसका माप कम हो या अधिक हो उनका अंगुल 'आत्मांगुलाभास' कहलाता है, पारमार्थिक आत्मांगुल नहीं है । यह कथन 'प्रवचन सारोद्धार' का है। 'पन्नवणा सूत्र में तो इस तरह कहा है कि- 'जिस काल में जो मनुष्य हो उनका मान-तेज. आत्मांगुल है' परन्तु वह मान अनियमित रूप है, इसलिए इसका वास्तविक स्वरूप इस तरह है :- परमाणु, रथरेणु, त्रसरेणु, लीख, जूं और जौ इन्हें अनुक्रम से आठ-आठ गुना करते जाने पर उत्सेधांगुल का माप आयेगा । फिर उत्सेधांगुल को हजार गुना करने से 'प्रमाणांगुल' आयेगा और उसे ही दो गुना करने से वीर परमात्मा का 'आत्मांगुल' आयेगा । (३६ से ४१) उत्सेधांगुल मानेन ज्ञेयं सर्वाङ्गिनां वपुः । प्रमाणांगुल मानेन नग पृथ्व्यादि शाश्वतम् ॥४२॥ तस्यांगुलस्य दैर्येण मीयते वसुधादिकम् । इत्याहुः केचिदन्ये च तत्क्षेत्र गणितेन वै ॥४३॥ तद्विष्कम्भेण केऽप्यन्ये पक्षेष्वेतेषु च त्रिषु । ईष्टे प्रामाणिकं पक्षं निश्चेतुं जगदीश्वरः ॥४४॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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