SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 438
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४०१) अन्तर्मुहूर्त वाले कई जन्म ले तो सब लघु अन्तर्मुहूर्त को मिलाकर एक गुरु अन्तर्मुहूर्त होता है और यह सर्व कायस्थिति जो ज्ञानियों ने अन्तर्मुहूर्त की कही है वह जघन्यतः अर्थात् कम से कम इतनी ही है- इस तरह समझना। (२४८-२५०) इस तरह कायस्थिति है। (८) औदारिकं सतैजस कार्मणमेतद्वपुस्त्रयं ह्येषाम् । मरुतां च वैक्रियाद्यं चतुष्टयं संभवेद्वपुषाम् ॥२५१॥ ___ इति देहा ॥६॥ अब इनके देह के विषय में कहते हैं- पृथ्वीकाय आदि का देह-शरीर तीन प्रकार का है - १. औदारिक, २. तैजस और ३. कार्मण। वायुकाय का चार प्रकार का शरीर है, तीन जो पूर्व कहे हैं वे ओर चौथा वैक्रिय शरीर होता है। (२५१) ऐसा देह है । (६) मसूरचन्द्र संस्थानं बादराणां भुवा वपुः । जलानां स्तिबुक्राकारं सूच्योघाकृति तेजसाम् ॥२५२॥ मरुतां तद् ध्वाजाकारं द्वैधानामपि भूरुहाम् । - स्युः शरीराण्यनियत संस्थानानीति तद्विदः ॥२५३॥ .. इति संस्थानम् ॥१०॥ .. अब इनके संस्थान के विषय में कहते हैं- बादर पृथ्वीकाय जीव का शरीर मसूर और चन्द्र के आकार वाला है। अप्काय का स्तिबुक की आकृति वाला है, अग्निकाय का सुई के समूह की आकृति वाला और वायुकाय का ध्वजा के आकार के समान है और दोनों प्रकार की वनस्पतिकाय के शरीर का आकार अनिर्णय रूप है। इस तरह ज्ञानियों ने कहा है। (२५२-२५३) . यह संस्थान है ।(१०) ___ असंख्येयोऽङ्गलस्यांशः मादीनां देह संमितिः । . जघन्यादुत्कर्षतश्च स एव हि महान् भवेत् ॥२५४॥ . अब इनका देहमान कहते हैं- पृथ्वीकाय, अप्काय और तेजसकाय का देहमान जघन्य से एक अंगुल के असंख्यवें भाग जितना है और उत्कृष्ट भी उतना ही है, परन्तु जघन्य की अपेक्षा से उत्कृष्ट बड़ा होता है। (२५४)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy