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विदेह में हमेशा अग्नि होती है तथा सर्व कर्म भूमियों में कुछ काल में अग्नि होती है। (१७८-१७६)
किं च ..... ऊर्ध्वाधोलोकयो यं तिर्यग्लोकऽप्यसौ भवेत् । ... सदा विदेहे भरतैरवतेषु च कर्हि चित् ॥१८०॥
तथा उर्ध्व और अधोलोक में यह अग्नि नहीं होती, तिर्यग् लोक में होती है। विदेह में हमेशा होती है तथा भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र में किसी समय में होती है। (१८०)
पाक दाहादि संतापं तनु ते नरकेषु यः । स नाग्निः किन्तु तत्तुल्यांस्ते विकुर्वन्ति पुद्गलान् ॥१८१॥ ... या चोष्ण वेदना तेषु श्रुयतेऽत्यन्त दारुणा । . . .. पृथिव्यादि पुद्गलानां परिणामः स तादृशः ॥१८२॥ .
और नरक के अन्दर जो पाक, दाह आदि दुःखों का अनुभव करवाते हैं। वह कोई अग्नि नहीं होती परन्तु परमाधामी द्वारा तैयार किए अग्नि पुद्गल होते हैं
और वह नरक के जीवों को जो उष्ण वेदना होती कहलाती है वह पृथ्वी आदि पुद्गलों के इस प्रकार के परिणाम हैं। (१८१-१८२)
तथोक्तम्-"ननु सप्तस्वपि पृथ्वीषुतेजस्कायिक वर्ज पृथ्वीकायिकादि स्पर्शो नारकाणां युक्तः तेषां तासु विद्यमानत्वात् । तेजस्काव स्पर्शस्तु कथम् । बादर तेजसां समय क्षेत्रे एव सद्भावात् । सूक्ष्म तेजसां पुनस्तत्र सद्भावेऽपि स्पर्शनेन्द्रिया विषयत्वात् इति ॥ अत्रोच्यते । इह तेजस्कायिकस्येव परमाधार्मिक निर्मित ज्वलन सदृश वस्तुनः स्पर्शः तेजस्कायिक स्पर्शः इति व्याख्येयम् । न तु साक्षात्तेजस्कायिकस्यैव ॥ अथवा भवान्तरानुभूत तेजस्कायिक पर्याय पृथिवीकायिक स्पर्शापेक्षया व्याख्येयम् ॥" इति भगवती शतक १३ उद्देश ४ वृत्तौ ॥ ___तथा इस सम्बन्ध में भगवती सूत्र में तेरहवें शतक के चौथे उद्देश की वृत्ति में इस प्रकार कहा है- कोई व्यक्ति यहां शंका करता है- सातों पृथ्वी में नरक के जीवों को तेजस्काय के अलावा अन्य तीन अर्थात् पृथ्वीकाय, अप्काय और वायुकाय का स्पर्श होता है, इस तरह जो कहते हो वह तो युक्त है क्योंकि वहां वे तीन विद्यमान हैं परन्तु उनको तेजस्काय का स्पर्श किस तरह होता है ? नहीं होता क्योंकि बादर तेजस्काय मनुष्य क्षेत्र में ही होती है और सूक्ष्म तेजस्काय वहां होती है। वास्तविक रूप में वह स्पर्शेन्द्रिय का विषय नहीं है। इस शंका का समाधान इस