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________________ (३२०) जिस तरह सत्य दस प्रकार का कहा है, उसी तरह असत्य भी दस प्रकार का कहा है। क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम, हास्य, भय और द्वेष से बोला जाता है अथवा कथा के प्रसंग में अत्य बोलने की बात में बोला जाता हो अथवा चोरी आदि में असत्य आरोपण करके अन्य का उपघात करने के लिए बोला जाता है। इत्यादि (१३७८-१३७६) तथाहुः- कोहे माणे माया लोभे पेजे तहेव दोसे य । हासे भय अख्खाइय उव घाइय णिस्सिया दसमा ॥१३८०॥ तथा अन्य स्थान में कहा है कि- क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम, द्वेष, हास्य,भय, वार्ता और उपघात- इन कारणों से असत्य भाषा की उत्पत्ति होती है। (१३८०) सत्यामुषादि दशधा प्रथमोत्पन्नमिश्रिता । । । विगत मिश्रिता चान्योत्पन्न विगंत मिश्रिता ॥१३८१॥ .. जीवाजीव मिश्रिते द्वे स्याजीवाजीव मिश्रिता । प्रत्येक मिश्रितानन्तमिश्रिताद्धाविमिश्रिता ॥१३८२।। इसी सत्यामृषा अर्थात् सत्य झूठ-मिश्र भाषा भी दस प्रकार की है।। उत्पन्न मिश्र, २- विगत मिश्र, ३- उत्पन्न विगत मिश्र, ४- जीव मिश्र, ५- अजीव मिश्र, ६. जीवाजीव मिश्र, ७- प्रत्येक मिश्र,८- अनन्त मिश्र, ६- अद्धा मिश्र और १०अद्धाद्ध मिश्रा (१३८१-१३८२) । अद्धाद्धा मिश्रितेत्यत्र प्रथमोत्पन्नमिश्रिता । उत्पन्नानाम निश्चित्य संख्यानं वदतो भवेत् ॥१३८३॥ यथात्र नगरे जाता नूनं दशाद्य दारकाः । मृतांस्तान् वदतोऽप्येवं भवेद्विगतमिश्रिता ॥१३८४॥ कितने उत्पन्न हुए (जन्मे) हों इस बात का निश्चय किए बिना ही बोलना या कहना वह उत्पन्न मिश्र कहलाता है जैसे कि इस शहर के अन्दर आज वास्तव में दस बच्चों का जन्म हुआ है तथा बिना निश्चय किए आज इतने व्यक्तियों की मृत्यु हुई है इस तरह कहना वह विगत मिश्र है। (१३८३-१३८४) एवं च- उत्पन्नांश्च विपत्रांश्च युगपद्वदतो भवेत् । उत्पन्न विगत मिश्राह्वयो भेदस्तृतीयकः ॥१३८५॥ इसी ही तरह जन्मे हुए हों और मृत्यु हुई हो, उनकी एकत्रित संख्या कहना
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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