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________________ ( ३२१ ) वह तीसरी उत्पन्न विगत मिश्र भाषा होती है। (१३८५) शंख शंखनकादीनांराशौ तान् जीवतो बहून् । दृष्टाल्पांश्च मृतान् जीव राश्युक्तौ जीव मिश्रिता ॥१३८६ ॥ शंख, खंखला आदि के राशि ढेर में अधिक जीते और थोड़े मरे हुए देखने पर भी यह जीव राशि है इस तरह कहना वह जीव मिश्र भाषा है । (१३८६) तत्रैव च मृतान् भूरीन् दृष्टा स्वल्यांश्च जीवतः । अजीवराशिरित्येवं वदतोऽजीव मिश्रिता ॥१३८७।। और इसी तरह ही राशि में अधिक मरे हों और थोड़े जीते देखने पर भी कहा कि यह अजीव राशि है, यह अजीव मिश्र भाषा है। (१३८७) एतावन्तोऽत्र जीवन्त एतावन्तो मृता इति । तत्रा निश्चित्य वदतो जीवाजीव विमिश्रिता ॥१३८८ ॥ कितने जीते हों और कितने मरे हुए हों इसका कुछ निश्चय किए बिना बोलना, वह जीवाजीव मिश्र भाषा है। (१३८८) अनन्तकाय निकरं दृष्ट्वा प्रत्येक मिश्रितम् । अनन्तकायं तं सर्व वदतो ऽनन्तमिश्रिता ॥१३८६ ॥ प्रत्येक शरीर के अन्दर मिश्र हुए अनंत काय के समूह को देखकर भी सर्व को अनन्त कहना, वह अनन्त मिश्र भाषा है । (१३८६) एवं प्रत्येक निकरमनन्त कायमिश्रितम् । प्रत्येकं वदतः सर्व भवेत्प्रत्येक मिश्रितः ॥ १३६० ॥ इसी तरह अनन्त काल मिश्रित प्रत्येक शरीर के समूह देखने पर भी सर्व को प्रत्येक कहना वह प्रत्येक मिश्र भाषा है। (१३६०) अद्धा कालः स च दिनं रात्रिर्वा परिगृह्यते । यस्यांश मिश्रिता साद्धामिश्रिता जायते यथा ॥ १३६१ ॥ कंचन स्वरयन् कश्चिद्वदेदुत्तिष्ठ भो लघुः । रात्रिर्जातेति दिवसे रात्रौ च रविरुद्गतः ॥ १३६२ ॥ अद्धा अर्थात् काल और यह काल यानि दिन अथवा रात्रि समझना। रात्रि या दिन के किसी अंश से मिश्रित हो वह अद्धामिश्र भाषा है, जैसे कि कोई मनुष्य अन्य से जल्दी काम करवाने के लिए; दिन हो फिर भी कहे कि जल्दी उठो, रात्रि पड़ गयी है और रात्रि हो फिर भी कहे कि जल्दी उठो, दिन हो गया है। (१३६१ - १३६२)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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