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________________ (३१६) पर की घास आदि जलती है फिर भी 'पर्वत जल रहा है। इस तरह लोग कहते हैं। यहां पर पर्वत और घासादि के तथा बर्तन और जल के अविभेद की विवक्षा से इस तरह कहा जाता है। तथा उदर (पेट) होता है फिर भी लोग कहते हैं कि- इस कन्या का उदर नहीं है क्योंकि इसमें संभोग बीज से उद्भवता उदर का अभाव है। यह भी व्यवहार सत्य का दृष्टान्त है। (१३७१ से १३७३) भावो वर्णादिकस्तेन सत्यं नु भावतो यथा । नैक वर्णोऽपि नीलस्य प्रबलत्वाच्छुको हरित् ॥१३७४॥ स्थूल स्कन्धेषु सर्वेषु सर्वे वर्णर सादयः । निश्चयाद्वयवहारस्तु प्रबलेन प्रवर्तते ॥१३७५।। भाव अर्थात् वर्णादिक। इस वर्णादि के कारण जो सत्य होता है वह भाव सत्य है। जैसे कि तोता केवल हरे रंग का ही नहीं होता, परन्तु हरा रंग प्रबल होता है इसलिए हरे रंग कहलाता है। निश्चिय नय से तो सारे स्थूल स्कंधों में सर्व वर्ण रस आदि होते हैं परन्तु व्यवहार प्रबल है। इससे वही कहलाता है। (१३७४- १३७५) योगोऽन्यवस्तु सम्बन्धो योगसत्यं ततो भवेत् । छत्र योगाद्यथा छत्री छत्राभावेऽपि कर्हिचित् ॥१३७६।। .. अन्य वस्तु के साथ में सम्बन्ध हो उसका नाम योग है। योग से जो सत्य हो वह योग सत्य कहलाता है। जिसके पास में छात्र (छतरी) हो वह मनुष्य छात्र वाला कहलाता है, परन्तु किसी समय उसके पास छात्र न हो तो भी व छात्र वाला कहलाता है। (१३७६). हृद्यं साधर्म्यमौपम्यं तेन सत्यं तु भूयसा । . काव्येषु विदितं यद्वत्तटाकोऽयं पयोधिवत् ॥१३७७॥ - हृद को जो किसी तरह समान धर्म हो उसके नाम से उपमा दी जाती है। जैसे कि यह तलाब समुद्र समान है, यह उपमा सत्य है और यह काव्यों में प्रसिद्ध है। (१३७७) . मृषाभाषाऽपि दशधा क्रोध मान विनिःसृताः । माया लोभ प्रेम हास्य भय द्वेष विनिःसृताः ॥१३७८॥ आख्यायिका निःसृता नु कथास्वसत्यवादिनः । चौर्यादिनाभ्याख्यातोऽन्यमुपघात विनिःसृताः ॥१३७६॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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