SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३१७) नहीं होता है वह केवल व्यवहार में बोलने वाली भाषा है, वह न सत्य न मृषा भाषा हैं। (१३६०) तत्र सत्या दशविधा प्रज्ञप्ता परमर्षिभिः । एभिः प्रकारैर्दशभिर्वदन्न स्याद्विराधकः ॥१३६१॥ तथा सत्य भाषा भी महर्षियों ने दस प्रकार की कही है। ये दस प्रकार की भाषा बोलने वाला मनुष्य विराधक नहीं होता। (१३६१) तथाहुः जणवय सम्मय ठवणा नामे रूवे पडुच्च सच्चे अ। . ववहारभाव जोगे दसमे उवम्म सच्चे अ ॥१॥ दस प्रकार का सत्य इस प्रकार कहा है- १- जनपद सत्य, २- संमत सत्य, ३- स्थापना सत्य,४- नाम सत्य,५- रूप सत्य,६- अपेक्षा सत्य,७- व्यवहार सत्य, ८- भाव सत्य, ६- योगसत्य और १०- उपमा सत्य। तस्मिंस्तस्मिन् जनपदे वचोऽर्थ प्रतिपत्तिकृत् । सत्यं जनपदं पिच्चं कोंकणादौ यथा पयः ॥१३६२॥ . जिस-जिस जनपद अर्थात देश में अर्थ को प्रतिपादन करने वाला वचन जनपद सत्य कहलाता है जैसे जल को कोंकण देश में पिच्च कहते हैं। (१३६२) भवेत्संमत सत्यं तद्यत्सर्वजन सम्मतम् । ... यथान्येषां पंकजत्वेऽप्यरविन्दं हि पंकजम् ॥१३६३॥ सर्वजनों को जो सम्मत हो वह सम्मत सत्य कहलाता है जैसे कि पंकजत्व अन्य वस्तुओं का नाम होने पर भी कमल ही पंकज कहलाता है। (१३६३) तद् भवेत्स्थापना सत्यं स्थापितं यत्प्रतीतिकृत ।। ... यथैककः पुरो बिन्दुद्वय युक्तंः शतं भवेत् ॥१३६४॥ प्रतीति करने के लिए जो स्थापन करने में आया हो वह स्थापना सत्य है। जैसे कि एक के आगे दो बिन्दु रखने से एक सौ कहलाता है। (१३६४) अहंदादि विकल्पेन कर्म लेप्यादिकं हि यत् ।। स्थाप्यते तदपि प्राज्ञैः स्थापना सत्यमीरितम् ॥१३६५॥ अर्हत् परमात्मा आदि की कल्पना करके प्रतिमा आदि स्थापना करने में आती है, वह भी स्थापना सत्य कहलाती हैं। (१३६५) ... u..
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy