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________________ (३१६) वचनयोग है, और जिसके द्वारा मन द्रव्यों का चिन्तन है वह मनोयोग कहलाता है। इस तरह से काय व्यापार को ही व्यवहार के अर्थ से तीन प्रकार का कहा है। इसलिए इसमें कोई दोष नहीं है। " अथ प्रसंगतो भाषास्वरूपं वच्मि सापि हि । चतुर्विधोक्तन्यायेन सत्यासत्यादि भेदतः ॥१३५६॥ अब प्रसंगोपात जिस भाषा का स्वरूप कहा है, वह भाषा भी पूर्वोक्त न्याय से सत्य असत्य आदि चार प्रकार की है। (१३५६) सन्तो जीवादयो भावाः सन्तो वा मुनयोऽथवा । मूलोत्तर गुणास्तेभ्यो हिता सत्याभिधीयते ॥१३५७॥. सत् शब्द बहुवचन होने से जीव आदि पदार्थों के अर्थ में है, मुनिजन के अर्थ में तथा मूल और उत्तर गुणों के अर्थ में उपयोग होता है और इस कारण से यह सत् हितकारी भाषा है वह सत्य भाषा कहलाती है। (१३५७) .. अयं भावः...... मुक्ति मार्गाराधनी या सा गी: सत्योच्यते हिता। सा तु सत्याप्यसत्यैव यान्येषामहितावहा ॥१३५८॥ असत्या तु भवेद् भाषा मुक्ति मार्ग विराधनी । द्वि स्वभावा तृतीयान्त्या नाराधन विराधनी ॥१३५६॥ इसका भावार्थ इस प्रकार है- मोक्षमार्ग की आराधना करने वाली हितकारी भाषा सत्य भाषा कहलाती है और जो दूसरों की अहितकारी है वह भाषा होने पर भी असत्य कहलाती है। मुक्ति मार्ग की विराधना करने वाली भाषा असत्य भाषा कहलाती है। तीसरी सत्यासत्य अर्थात् मिश्र स्वभाव वाली भाषा है और चौथी न सत्य न ही असत्य अर्थात् व्यवहार भाषा है । ये दोनों मोक्षमार्ग की आराधना करने वाली भी नहीं हैं तथा विराधना करने वाली भी नहीं हैं। (१३५८-१३५६) उक्तं च ...... सच्चा हिया सयामिह संतो मुणयो गुणा पयत्था वा। तव्विवरीया मोसा मीसा जा तदुभय सहावा. ॥१३६०॥ 'अणहिगया जा तीसु वि सद्दोच्चिय केवला असच्च मोसा । इति॥' अन्य स्थान पर कहा है कि- सत् शब्द मुनिराज गुण और पदार्थ का वाचक है । इसी तरह की हितावह भाषा वह सर्वदा सत्य भाषा है। इससे जो विपरीत हो वह असत्य भाषा जानना। सत्य और असत्य इस तरह जो उभय स्वभाव वाली हो वह मिश्र भाषा समझना और जिसका इन तीन में से एक-एक में भी समावेश
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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