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________________ (२५६) आह च - एक्केकमख्खरं पुण स पर पज्जाय भेयओ भिन्नम्। तं सव्व दव्व पज्जायरासिमाणं मुणेयव्वम् ॥१०३०॥ जे लहड़ केवलो सेसवण सहिओ अ पजवेऽगारो। ते तस्स पजाया सेसा पर पज्जवा तस्स ॥१०३१॥ अन्यत्र स्थान पर भी कहा है कि- जैसे प्रत्येक अक्षर के स्व पर्याय हैं वैसे ही पर पर्याय भी हैं। ये सब पर्याय सर्व द्रव्य पर्यायों की राशि के समान होते हैं। केवल अकार को शेष वर्गों के साथ जोड़ने से जो पर्याय होते हैं वे इसके स्व पर्याय है और शेष इसके पर पर्याय हैं । (१०३०-१०३१) अयं भावः- "यान् पर्यायन केवल: अकार: शेष वर्ण सहितश्च लभते ते तस्य स्वपर्यायाः। शेषाःशेष वर्ण सम्बन्धिनो घटाद्यपरपदार्थसम्बन्धिनश्च परपर्यायाः तस्य अकारस्य इति ॥". इसका भावार्थ यह है कि- 'जो पर्याय केवल अकार को शेष वर्ण के साथ में जोड़ने से प्राप्त होता है वह स्व पर्याय है, शेष अर्थात् शेष वर्ण से संबन्धित और घटादि अपर पगार्थ सम्बन्धी पर्याय - यह अकार का पर पर्याय है।' एवं विधानेक वर्ण पर्यायौघैः समन्वितम् । ... ततश्चानन्त पर्यायं श्रुत ज्ञानं श्रुतं श्रुते ॥१०३२॥ . . इसी तरह श्रुत ज्ञान अनेक पर्यायों की राशियों वाला है और इससे ही इसे · शास्त्र में अनन्त पर्याय वाला कहा है । (१०३२) अथावधेः स्वपर्याया विविधा या भिदोऽवधेः । क्षायो पशमिक भव प्रत्ययादि विभेदतः ॥१०३३॥ अब अवधि ज्ञान के क्षायोपशमिक, भव प्रत्यय आदि भेद के कारण से - इसके जो विविध भेद होते हैं वह इस अवधि ज्ञान के स्व पर्याय हैं। (१०३३) तिर्यग् नैरयिक स्वर्गिनरादि स्वामि भेदतः । अनन्तभित्स्व विषय द्रव्य पर्याय भेदतः ॥१०३४॥ असंख्यभित्स्व विषय क्षेत्राद्धाभेदतोऽपि च । निर्विभागै भार्गश्च ते चैवं स्युरनन्तकाः ॥१०३५॥ युग्म। और ये तिर्यंच, नारकी, देवता और मनुष्य आदि स्वामी भेद को लेकर तथा अनन्त भेद वाले, अपने विषय के द्रव्य पर्याय के भेद को लेकर अनंन्त भेद वाले
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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